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02. विद्येश्वरसंहिता || 09 || महेश्वरका ब्रह्मा और विष्णुको अपने निष्कल और सकल स्वरूपका परिचय देते हुए लिङ्गपूजनका महत्त्व बताना

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02. विद्येश्वरसंहिता  || 09 || महेश्वरका ब्रह्मा और विष्णुको अपने निष्कल और सकल स्वरूपका परिचय देते हुए लिङ्गपूजनका महत्त्व बताना नन्दिकेश्वर कहते है- तदनन्तर वे दोनों ब्रह्मा और विष्णु भगवान् शंकरको प्रणाम करके दोनो हाथ जोड़ उनके दायें-बायें भागमें चुपचाप खड़े हो गये। फिर, उन्होंने वहाँ साक्षात् प्रकट पूजनीय महादेवजीको श्रेष्ठ आसनपर स्थापित करके पवित्र पुरुष-वस्तुओंद्वारा उनका पूजन किया। दीर्घकालतक अविकृतभावसे सुस्थिर रहनेवाली वस्तुओंको ' पुरुष-वस्तु ' कहते हैं और अल्पकालतक ही टिकनेवाली क्षणभङ्गुर वस्तुएँ ' प्राकृत वस्तु' कहलाती हैं। इस तरह वस्तुके ये दो भेद जानने चाहिये। (किन पुरुष वस्तुओंसे उन्होंने भगवान् शिवका पूजन किया, यह बताया जाता है) हार, नूपुर, केयूर, किरीट, मणिमय कुण्डल, यज्ञोपवीत, उत्तरीय वस्त्र, पुष्प माला, रेशमी वस्त्र, हार, मुद्रिका, पुष्प, ताम्बूल, कपूर, चन्दन एवं अगुरुका अनुलेप, धूप, दीप, श्वेतछत्र, व्यजन, ध्वजा, चैवर तथा अन्यान्य दिव्य उपहारोंद्वारा, जिनका वैभव वाणी और मनकी पहुँचसे परे था, जो केवल पशुपति ( परमात्मा ) के ही योग्य थे और जि