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Showing posts from June, 2024

03. रुद्रसंहिता 01 | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 14. विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादिकी धाराओंसे शिवजीकी पूजाका माहात्म्य

03. रुद्रसंहिता | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 14. विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादिकी धाराओंसे शिवजीकी पूजाका माहात्म्य ब्रह्माजी बोले- नारद ! जो लक्ष्मी प्राप्तिकी इच्छा करता हो, वह कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शङ्खपुष्पसे भगवान् शिवकी पूजा करे। ब्रह्मन् ! यदि एक लाखकी संख्यामें इन पुष्पोंद्वारा भगवान् शिवकी पूजा सम्पन्न हो जाय तो सारे पापोंका नाश होता है और लक्ष्मीकी भी प्राप्ति हो जाती है, इसमें संशय नहीं है। प्राचीन पुरुषोंने बीस कमलोंका एक प्रस्थ बताया है। एक सहस्त्र बिल्वपत्रोंको भी एक प्रस्थ कहा गया है। एक सहस्त्र शतपत्रसे आधे प्रस्थकी परिभाषा की गयी है। सोलह पलोंका एक प्रस्थ होता है और दस टङ्कोंका एक पल। इस मानसे पत्र, पुष्प आदिको तौलना चाहिये। जब पूर्वोक्त संख्यावाले पुष्पोंसे शिवकी पूजा हो जाती है, तब सकाम पुरुष अपने सम्पूर्ण अभीष्टको प्राप्त कर लेता है। यदि उपासकके मनमें कोई कामना न हो तो वह पूर्वोक्त पूजनसे शिवस्वरूप हो जाता है। मृत्युञ्जय-मन्त्रका जब पाँच लाख जप पूरा हो जाता है, तब भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। एक लाखके जपसे शरीरकी शुद्धि होती है, दूसरे लाखके जपसे पूर्वजन्मक

03. रुद्रसंहिता | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 13. शिवपूजनकी सर्वोत्तम विधिका वर्णन

03. रुद्रसंहिता | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 13. शिवपूजनकी सर्वोत्तम विधिका वर्णन ब्रह्माजी कहते हैं- अब मैं पूजाकी सर्वोत्तम विधि बता रहा हूँ, जो समस्त अभीष्ट तथा सुखोंको सुलभ करानेवाली है। देवताओ तथा ऋषियो ! तुम ध्यान देकर सुनो। उपासकको चाहिये कि वह ब्राह्म मुहूर्तमें शयनसे उठकर जगदम्बा पार्वती- सहित भगवान् शिवका स्मरण करे तथा हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर भक्तिपूर्वक उनसे प्रार्थना करे- 'देवेश्वर ! उठिये, उठिये ! मेरे हृदय-मन्दिरमें शयन करनेवाले देवता ! उठिये ! उमाकान्त ! उठिये और ब्रह्माण्डमें सबका मङ्गल कीजिये। मैं धर्मको जानता हूँ, किंतु मेरी उसमें प्रवृत्ति नहीं होती। मैं अधर्मको जानता हूँ, परंतु मैं उससे दूर नहीं हो पाता। महादेव ! आप मेरे हृदयमें स्थित होकर मुझे जैसी प्रेरणा देते हैं, वैसा ही मैं करता हूँ।' इस प्रकार भक्तिपूर्वक कहकर और गुरुदेवकी चरणपादुकाओंका स्मरण करके गाँवसे बाहर दक्षिण दिशामें मल-मूत्रका त्याग करनेके लिये जाय। मलत्याग करनेके बाद मिट्टी और जलसे धोनेके द्वारा शरीरकी शुद्धि करके दोनों हाथों और पैरोंको धोकर दतुअन करे, सूर्योदय होनेसे पहले ही दतुअन करके मुँहको सोलह ब

03. रुद्रसंहिता | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 12. भगवान् शिवकी श्रेष्ठता तथा उनके पूजनकी अनिवार्य आवश्यकताका प्रतिपादन

03. रुद्रसंहिता | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 12. भगवान् शिवकी श्रेष्ठता तथा उनके पूजनकी अनिवार्य आवश्यकताका प्रतिपादन नारदजी बोले- ब्रह्मन् ! प्रजापते ! आप धन्य हैं; क्योंकि आपकी बुद्धि भगवान् शिवमें लगी हुई है। विधे ! आप पुनः इसी विषयका सम्यक् प्रकारसे विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये । ब्रह्माजीने कहा - तात ! एक समयकी बात है, मैं सब ओरसे ऋषियों तथा देवताओंको बुलाकर उन सबको क्षीरसागरके तटपर ले गया, जहाँ सबका हित-साधन करनेवाले भगवान् विष्णु निवास करते हैं। वहाँ देवताओंके पूछनेपर भगवान् विष्णुने सबके लिये शिवपूजनकी ही श्रेष्ठता बतलाकर यह कहा कि 'एक मुहूर्त या एक क्षण भी जो शिवका पूजन नहीं किया जाता, वही हानि है, वही महान् छिद्र है, वही अंधापन है और वही मूर्खता है। जो भगवान् शिवकी भक्तिमें तत्पर है, जो मनसे उन्होंको प्रणाम और उन्हींका चिन्तन करते हैं, वे कभी दुःखके भागी नहीं होते * ।  * भवभक्तिपरा ये च भवप्रणतचेतसः ।  भवसंस्मरणा ये च न ते दुःखस्य भाजनाः ।। (शि० पु० रु० सू० खं० १२।२१) जो महान् सौभाग्यशाली पुरुष मनोहर भवन, सुन्दर आभूषणोंसे विभूषित स्त्रियाँ, जितनेसे मनको संतोष हो उतना धन, पुत्र-प

03. रुद्रसंहिता | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 11. शिवपूजनकी विधि तथा उसका फल

03. रुद्रसंहिता | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 11. शिवपूजनकी विधि तथा उसका फल ऋषि बोले- व्यासशिष्य महाभाग सूतजी ! आपको नमस्कार है। आज आपने भगवान् शिवकी बड़ी अद्भुत एवं परम पावन कथा सुनायी है। दयानिधे ! ब्रह्मा और नारदजीके संवादके अनुसार आप हमें शिवपूजनकी वह विधि बताइये, जिससे यहाँ भगवान् शिव संतुष्ट होते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-सभी शिवकी पूजा करते हैं। वह पूजन कैसे करना चाहिये ? आपने व्यासजीके मुखसे इस विषयको जिस प्रकार सुना हो, वह बताइये। महर्षियोंका वह कल्याणप्रद एवं श्रुतिसम्मत वचन सुनकर सूतजीने उन मुनियोंके प्रश्नके अनुसार सब बातें प्रसन्नतापूर्वक बतायीं । सूतजी बोले- मुनीश्वरो ! आपने बहुत अच्छी बात पूछी है। परंतु वह रहस्यकी बात है। मैंने इस विषयको जैसा सुना है और जैसी मेरी बुद्धि है, उसके अनुसार आज कुछ कह रहा हूँ। जैसे आपलोग पूछ रहे हैं, उसी तरह पूर्वकालमें व्यासजीने सनत्कुमारजीसे पूछा था। फिर उसे उपमन्युजीने भी सुना था। व्यासजीने शिवपूजन आदि जो भी विषय सुना था, उसे सुनकर उन्होंने लोकहितकी कामनासे मुझे पढ़ा दिया था। इसी विषयको भगवान् श्रीकृष्णने महात्मा उपमन्युसे सुना था।