03. रुद्रसंहिता 01 | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 14. विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादिकी धाराओंसे शिवजीकी पूजाका माहात्म्य
03. रुद्रसंहिता | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 14. विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादिकी धाराओंसे शिवजीकी पूजाका माहात्म्य ब्रह्माजी बोले- नारद ! जो लक्ष्मी प्राप्तिकी इच्छा करता हो, वह कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शङ्खपुष्पसे भगवान् शिवकी पूजा करे। ब्रह्मन् ! यदि एक लाखकी संख्यामें इन पुष्पोंद्वारा भगवान् शिवकी पूजा सम्पन्न हो जाय तो सारे पापोंका नाश होता है और लक्ष्मीकी भी प्राप्ति हो जाती है, इसमें संशय नहीं है। प्राचीन पुरुषोंने बीस कमलोंका एक प्रस्थ बताया है। एक सहस्त्र बिल्वपत्रोंको भी एक प्रस्थ कहा गया है। एक सहस्त्र शतपत्रसे आधे प्रस्थकी परिभाषा की गयी है। सोलह पलोंका एक प्रस्थ होता है और दस टङ्कोंका एक पल। इस मानसे पत्र, पुष्प आदिको तौलना चाहिये। जब पूर्वोक्त संख्यावाले पुष्पोंसे शिवकी पूजा हो जाती है, तब सकाम पुरुष अपने सम्पूर्ण अभीष्टको प्राप्त कर लेता है। यदि उपासकके मनमें कोई कामना न हो तो वह पूर्वोक्त पूजनसे शिवस्वरूप हो जाता है। मृत्युञ्जय-मन्त्रका जब पाँच लाख जप पूरा हो जाता है, तब भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। एक लाखके जपसे शरीरकी शुद्धि होती है, दूसरे लाखके जपसे पूर्वजन्मक