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काशी 01 [बनारस या वाराणसी]

काशी-माहात्म्य मुक्ति जन्म महि जानि, ग्यान खानि अघ हानि कर ।  जहँ बस संभु भवानि, सो कासी सेइअ कस न ॥ ऐतिहासिकारों की दृष्टिमें काशी संसारकी सबसे प्राचीन नगरी है । इसका वेदोंमें कई जगह उल्लेख है ।  आप इव काशिना संगृभीताः' (ऋक् ७ । १०४ । ८ ) 'मघवन् ! ! काशिरित्ते' (ऋ० ३ । ३० । ५) । 'यज्ञ: काशीनां भरतः सात्वतामिव' (शतप० ब्रा० १३ । ५ । ४ । १९; २१) आदि ।  पुराणोंके अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है । पहले यह भगवान् माधवकी पुरी थी। कहा जाता है कि एक बार भगवान शङ्कर से झूठ बोलने के कारण भगवान् शङ्करने ब्रह्माजीका एक सिर काट दिया। इससे ब्रह्महत्या उनके पीछे पड़ गई परिणामत: ब्रह्माजीका वह सिर उनके करतलसे संलग्न हो गया अर्थात चिपक गया। वे इससे मुक्त होने के लिए 12 वर्षों तक बदरीनारायण, कुरुक्षेत्र, ब्रह्महृद आदि तीर्थों में घूमते रहे । पर वह सिर हाथसे अलग नहीं हुआ। अन्तमें ज्यों ही उन्होंने काशी की सीमा में प्रवेश किया, ब्रह्महत्याने उनका पीछा छोड़ दिया और स्नान करते ही करसंलग्न कपाल भी अलग हो गया । जहाँ वह कपाल छूटा, वही कपालमोचन तीर्थ कहलाया।  इससे प्रभुके आनन्दा की सीमा न