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Showing posts from September, 2023

503. || तीसरी कहानी || पाटलिपुत्र के निर्माण की कथा

503. || तीसरी कहानी  || पाटलिपुत्र के निर्माण की कथा तृतीय तरंग पाटलिपुत्र के निर्माण की कथा इतना कहने पर, उस वन मे काणभूति के एकाग्रचित्त होकर सुनने के कारण, वररुचि ने पुन कहना प्रारम्भ किया ॥ १ ॥ कुछ समय पश्चात् एक दिन अध्यापन कार्य समाप्त होने पर दैनिक कार्य से निवृत्त हुए उपाध्याय वर्ष मे हमलोगों ने पूछा ॥ २॥ गुरुदेव, यह पाटलिपुत्र नगर इस प्रकार लक्ष्मी और सरस्वती' दोनों का क्षेत्र कैसे बना? यह कृपा कर कहिए ॥ ३ ॥ यह सुनकर उपाध्याय वर्ष ने हमलोगों से कहा कि इस नगर (पाटलिपुत्र ) की कथा सुनो- "गगाद्वार' (हरद्वार) मे कनखल नाम का पवित्र तीर्थ है ॥४॥ उस कनखल तीर्थ में देवगज ऐरावत ने उशीनर नामक पर्वत के शिखर को तोडकर गंगा को उतारा है ॥५॥ वहाँ (कनखल में) दक्षिण देश का निवासी एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ तपस्या कर रहा था। इसी बीच वही पर उसके तीन पुत्र उत्पन्न हुए ॥ ६ ॥ कालक्रम से उस सपत्नीक ब्राह्मण के स्वर्ग सिधारने पर उसके वे तीनों बालक विद्याध्ययन करने के लिए राजगृह चले गये ॥७॥

502. || दूसरी कहानी || वररुचि (पुष्पवन्त) और व्याडि की कथा

502. || दूसरी कहानी || वररुचि (पुष्पवन्त) और व्याडि की कथा द्वितीय तरंग वररुचि (पुष्पवन्त) को कथा मानव-शरीर धारण किये हुए पुष्पदन्त नामक गण वररुचि' एवं कात्यायन के नाम से प्रसिद्ध हुआ ॥ १॥ समस्त विद्याओं का पूर्ण अध्ययन तथा सम्राट् नन्द का मन्त्रित्व करके वह ( कात्यायन ) एक बार खिन्न होकर विन्ध्यवासिनी देवी के दर्शन करने के लिए आया ॥ २ ॥ तपस्या से आराधित विन्ध्यवासिनी देवी ने स्वप्न में वररुचि को एक आदेश दिया। उस आदेश के अनुसार वह काणभूति को देखने के लिए विन्ध्यारण्य में गया ॥ ३ ॥ बाघ और वानरों से भरे हुए, जल-रहित एवं रूखे वृक्षों से व्याप्त उस विन्ध्यारण्य में उसने एक अत्यन्त ऊँचे और विस्तृत बरगद वृक्ष को देखा ॥४॥ पुष्पदन्त ने उस वटवृक्ष के पास सैकड़ों पिशाचों से घिरे हुए सालवृक्ष के समान लम्बे कणभूति को देखा ॥५॥ कणभूति ने कात्यायन को देखकर उसके चरण छूकर प्रणाम किया और कुछ समय के उपरान्त विश्राम कर लेने पर कात्यायन ने काणभूति से पूछा ॥ ६॥ 'हे काणभूते ! ऐसे सदाचारी होकर तुम ऐसी हीन गति को कैसे प्राप्त हुए ?' कात्यायन के स्नेहपूर्ण प्रश्न को सुनकर काणभूति ने कहा ॥७॥ मुझे स्

501. || प्रथम कहानी || शिव और पार्वती का संवाद और पार्वती के जन्म की कथा

501. ||  प्रथम कहानी || शिव और पार्वती का संवाद और पार्वती के जन्म की कथा प्रथम कहानी शिव और पार्वती का संवाद किन्नर, गन्धर्व और विद्याधरों की निवासभूमि तथा समस्त पर्वतों का सम्प्राद् हिमालय पर्वत जगत प्रसिद्ध है ।।१३।। पर्वतों में इस हिमालय का माहात्म्य इतना बढा-चढ़ा है कि साक्षात् त्रि-जगत-जननी पार्वती, उसकी पुत्री बनीं ॥ १४ ॥ इस हिमालय का उत्तर शिखर कैलाश नाम से प्रसिद्ध है, जो सहस्रों योजन के भू-भाग को आक्रान्त करके फैला हुआ है ।। १५ ।। यह कैलास शिखर, अपनी अमल-धवल कान्ति से मन्दराचल को देखता और हँसता है कि उसके द्वारा क्षीरसमुद्र का मन्थन होने पर भी वह मेरे समान सुधा-धवल अर्थात अमृत के समान श्वेत न हो सका और मैं बिना प्रयत्न से ही शुभ्र अर्थात पूर्णतया श्वेत हूँ ।। १६ ।। उस कैलास शिखर पर, स्थावर-जंगम सृष्टि के स्वामी, विद्याधरो और सिद्धों से सेवित, महेश्वर शिव, अपनी अर्धांगिनी पार्वती के साथ निवास करते हैं ।। १७ ।। जिस शिवजी के पीतवर्ण एव ऊँचे जटाजूट पर स्थित अभिनव चन्द्रमा उदयाचल के सन्ध्याकालीन पीतवर्ण की शोभा धारण करता है ॥१८॥ जिन शिवजी ने अन्धकासुर के हृदय में शूल भोंकते हुए एक