503. || तीसरी कहानी || पाटलिपुत्र के निर्माण की कथा
503. || तीसरी कहानी || पाटलिपुत्र के निर्माण की कथा तृतीय तरंग पाटलिपुत्र के निर्माण की कथा इतना कहने पर, उस वन मे काणभूति के एकाग्रचित्त होकर सुनने के कारण, वररुचि ने पुन कहना प्रारम्भ किया ॥ १ ॥ कुछ समय पश्चात् एक दिन अध्यापन कार्य समाप्त होने पर दैनिक कार्य से निवृत्त हुए उपाध्याय वर्ष मे हमलोगों ने पूछा ॥ २॥ गुरुदेव, यह पाटलिपुत्र नगर इस प्रकार लक्ष्मी और सरस्वती' दोनों का क्षेत्र कैसे बना? यह कृपा कर कहिए ॥ ३ ॥ यह सुनकर उपाध्याय वर्ष ने हमलोगों से कहा कि इस नगर (पाटलिपुत्र ) की कथा सुनो- "गगाद्वार' (हरद्वार) मे कनखल नाम का पवित्र तीर्थ है ॥४॥ उस कनखल तीर्थ में देवगज ऐरावत ने उशीनर नामक पर्वत के शिखर को तोडकर गंगा को उतारा है ॥५॥ वहाँ (कनखल में) दक्षिण देश का निवासी एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ तपस्या कर रहा था। इसी बीच वही पर उसके तीन पुत्र उत्पन्न हुए ॥ ६ ॥ कालक्रम से उस सपत्नीक ब्राह्मण के स्वर्ग सिधारने पर उसके वे तीनों बालक विद्याध्ययन करने के लिए राजगृह चले गये ॥७॥