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Showing posts from July, 2022

02. विद्येश्वरसंहिता || 01. प्रयागमें सूतजीसे मुनियोंका तुरंत पापनाश करनेवाले साधनके विषयमें प्रश्न

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                     श्री पुराण पुरुषोत्तमाय नमः।                            श्रीशिवमहापुराण                            श्री गणेशाय नमः।                            विद्येश्वरसंहिता प्रयागमें सूतजीसे मुनियोंका तुरंत पापनाश करनेवाले साधनके विषयमें प्रश्न जातसमानभाव मार्य मीमजराणरमात्मदेवम् ।  पञ्चाननं प्रवरूपञ्चविनोदशीलं सम्भावये मनसि शंकरमम्बिकेशम् ।।  जो आदि और अन्तमें (तथा मध्य में भी) नित्य मङ्गलमय हैं, जिनकी समानता अथवा तुलना कहीं भी नहीं है, जो आत्माके स्वरूपको प्रकाशित करनेवाले देवता (परमात्मा) हैं, जिनके पाँच मुख हैं और जो खेल-ही खेलमे- अनायास जगत्‌की रचना, पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरूप पाँच प्रबल कर्म करते रहते हैं, उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर ईश्वर अम्बिकापति भगवान् शंकरका में मन-ही-मन चिन्तन करता हूँ। व्यासजी कहते हैं जो धर्मका महान् क्षेत्र है और जहाँ गङ्गा-यमुनाका संगम हुआ है, उस परम पुण्यमय प्रयाग, जो ब्रहमलोकका मार्ग है, सत्यव्रतमें तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी महाभाग महात्मा मुनियोंने एक विशाल ज्ञानयज्ञका आयोजन किया। उस ज्ञानयज्ञका समाचार सुनकर पौराणिक-शिरो

01. शिवपुराण माहात्म्य || 06 - 07. शिवपुराणके श्रवणकी विधि तथा श्रोताओंके पालन करनेयोग्य नियमोंका वर्णन

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01. शिवपुराण माहात्म्य || 06 - 07. शिवपुराणके श्रवणकी विधि तथा श्रोताओंके पालन करनेयोग्य नियमोंका वर्णन शौनकजी कहते है  महाप्राज्ञ व्यासशिष्य सूतजी ! आपको नमस्कार है। | आप धन्य है, शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ है। आपके महान् गुण वर्णन करने योग्य हैं। अब आप कल्याणमय शिवपुराणके श्रवणकी विधि बतलाइये, जिससे सभी श्रोताओंको सम्पूर्ण उत्तम फलकी प्राप्ति हो सके। सूतजीने कहा मुने शौनक ! अब में तुम्हें सम्पूर्ण फलकी प्राप्तिके लिये शिवपुराणके श्रवणकी विधि बता रहा हूँ। पहले किसी ज्योतिषको बुलाकर दानमानसे संतुष्ट करके अपने सहयोगी लोगोंके साथ बैठकर बिना किसी विध्नबाधा के कथाकी समाप्ति होनेके उद्देश्यसे शुद्ध मुहूर्तका अनुसंधान कराये और प्रयत्नपूर्वक देश देशमें— स्थान-स्थानपर यह संदेश भेजे कि 'हमारे यहाँ शिवपुराणकी कथा होनेवाली है। अपने कल्याणकी इच्छा रखनेवाले लोगोंको उसे सुननेके लिये अवश्य पधारना चाहिये ।' कुछ लोग भगवान् श्रीहरिकी कथासे बहुत दूर पड़ गये हैं। कितने ही स्त्री, शूद्र आदि भगवान् शंकरके कथा-कीर्तनसे वश्चित रहते हैं। उन सबको भी सूचना हो जाये, ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये। देश-देश में जो भगवान

01. शिवपुराण माहात्म्य || 05. चञ्चलाके प्रयत्नसे पार्वतीजीकी आज्ञा पाकर तुम्बुरुका विन्ध्यपर्वतपर शिवपुराणकी कथा सुनाकर बिन्दुगका पिशाचयोनिसे उद्धार करना तथा उन दोनों दम्पतिका शिवधाममें सुखी होना

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01. शिवपुराण माहात्म्य || 05. चञ्चुलाके प्रयत्नसे पार्वतीजीकी आज्ञा पाकर तुम्बुरुका विन्ध्यपर्वतपर शिवपुराणकी कथा सुनाकर बिन्दुगका पिशाचयोनिसे उद्धार करना तथा उन दोनों दम्पतिका शिवधाममें सुखी होना सूतजी बोले   शौनक ! एक दिन परमानन्दमें निमग्न हुई चञ्चुलाने उमादेवीके पास जाकर प्रणाम किया और दोनों हाथ जोड़कर वह उनकी स्तुति करने लगी।  चञ्चुला बोली  गिरिराजनन्दिनी! स्कन्दमाता उमे ! मनुष्योंने सदा आपका सेवन किया है। समस्त सुखोंको देनेवाली शम्भुप्रिये ! आप ब्रह्मस्वरूपिणी हैं। विष्णु और ब्रह्मा आदि देवताओंद्वारा सेव्य हैं। आप ही सगुणा और निर्गुणा हैं तथा आप ही सूक्ष्मा सच्चिदानन्द-स्वरूपिणी आद्या प्रकृति हैं। आप ही संसारकी सृष्टि, पालन और संहार करनेवाली हैं। तीनों गुणोंका आश्रय भी आप ही हैं। ब्रह्मा, विष्णु और‍ महेश्वर- इन तीनों देवताओंका आवास स्थान तथा उनकी उत्तम प्रतिष्ठा करनेवाली पराशक्ति आप ही हैं। सूतजी कहते हैं शौनक ! जिसे सदगति प्राप्त हो चुकी थी, वह चञ्चुला इस प्रकार महेश्वरपत्नी उमाकी स्तुति करके सिर झुकाये चुप हो गयी। उसके नेत्रोंमें प्रेमके आँसू उमड़ आये थे। तब करुणासे

01. शिवपुराण माहात्म्य || 04. चञ्चलाकी प्रार्थनासे ब्राह्मणका उसे पूरा शिवपुराण सुनाना और समयानुसार शरीर छोड़कर शिवलोकमें जा चञ्चुलाका पार्वतीजीकी सखी एवं सुखी होना

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01. शिवपुराण माहात्म्य || 04. चञ्चलाकी प्रार्थनासे ब्राह्मणका उसे पूरा शिवपुराण सुनाना और समयानुसार शरीर छोड़कर शिवलोकमें जा चञ्चुलाका पार्वतीजीकी सखी बनना एवं सुखी होना ब्राह्मण बोले नारी ! सौभाग्यकी बात है कि भगवान् शंकरकी कृपासे शिवपुराणकी इस वैराग्ययुक्त कथाको सुनकर तुम्हें समयपर चेत हो गया है । ब्राह्मणपत्नी तुम डरो मत। भगवान् शिवकी शरण में जाओ। शिवकी कृपासे सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। मैं तुमसे भगवान् शिवकी कीर्तिकथासे युक्त उस परम वस्तुका वर्णन करूंगा, जिससे तुम्हें सदा सुख देनेवाली उत्तम गति प्राप्त होगी। शिवकी उत्तम कथा सुननेसे ही तुम्हारी बुद्धि इस तरह पश्चात्तापसे युक्त एवं शुद्ध हो गयी है। साथ ही तुम्हारे मनमें विषयोंके प्रति वैराग्य हो गया है। पश्चात्ताप ही पाप करनेवाले पापियोंके लिये सबसे बड़ा प्रायश्चित है। सत्पुरुषोंने सबके लिये पश्चातापको ही समस्त पापोंका शोधक बताया है, पश्चात्तापसे ही पापोंकी शुद्धि होती है। जो पश्चात्ताप करता है, वही वास्तव में पापोंका प्रायश्चित करता है; क्योंकि सत्पुरुषोंने समस्त पापोंकी शुद्धिके लिये जैसे प्रायश्चितका उपदेश किया

01. शिवपुराण माहात्म्य || 02-03. शिवपुराणके श्रवणसे देवराजको शिवलोककी प्राप्ति तथा चञ्चुलाका पापसे भय एवं संसारसे वैराग्य

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01. शिवपुराण माहात्म्य || 02-03. शिवपुराणके श्रवणसे देवराजको शिवलोककी प्राप्ति तथा चञ्चुलाका पापसे भय एवं संसारसे वैराग्य श्री शौनकजीने कहा महाभाग सूतजी ! आप धन्य है, परमार्थ-तत्वके ज्ञाता हैं, आपने कृपा करके हमलोगोको यह बड़ी अद्भुत एवं दिव्य कथा सुनायी है। भूतलपर इस कथाके समान कल्याणका सर्वश्रेष्ठ साधन दूसरा कोई नहीं है, यह बात हमने आज आपकी कृपासे निश्चयपूर्वक समझ ली। सूतजी कलियुगमें इस कथाके द्वारा कौन-कौन-से पापी शुद्ध होते हैं? उन्हें कृपापूर्वक बताइये और इस जगत्‌को कृतार्थ कीजिये। सूतजी बोले—मुने ! जो मनुष्य पापी, दुराचारी, खल तथा काम-क्रोध आदि में निरन्तर डूबे रहनेवाले हैं, वे भी इस पुराणके श्रवण-पठनसे अवश्य ही शुद्ध हो जाते हैं । इसी विषय में जानकार मुनि इस प्राचीन इतिहासका उदाहरण दिया करते हैं, जिसके श्रवणमात्रसे पापोंका पूर्णतया नाश हो जाता है। पहलेकी बात है, कहीं किरातोंके नगरमें एक ब्राह्मण रहता था, जो ज्ञानमें अत्यन्त दुर्बल, दरिद्र, रस बेचनेवाला तथा वैदिक धर्मसे विमुख था वह स्नान-संध्या आदि कमोंसे भ्रष्ट हो गया था और वैश्यवृत्तिमें तत्पर रहता था। उसका नाम था देवराज

01. शिवपुराण माहात्म्य || 01. शौनकजीके साधनविषयक प्रश्न करनेपर सूतजीका उन्हें शिवपुराणकी उत्कृष्ट महिमा सुनाना

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01. शिवपुराण माहात्म्य || 01. शौनकजीके साधनविषयक प्रश्न करनेपर सूतजीका उन्हें शिवपुराणकी उत्कृष्ट महिमा सुनाना श्री गणेशाय नमः। श्रीशिवपुराण- माहात्म्य भवाब्धिमनं दीनं मां समुद्धर भवार्णवात्।  कर्मग्राहगृहीताङ्गं दासोऽहं तव शंकर ॥  भव-आब्धि-मनं दीनं मां सम-उद्धर भवार्ण-वात्।  कर्म-ग्राह-गृहीताङ्गं दासो-ऽहं तव शंकर ॥  शौनकजीके साधनविषयक प्रश्न करनेपर सूतजीका उन्हें शिवपुराणकी उत्कृष्ट महिमा सुनाना श्रीशौनकजीने पूछा महाज्ञानी सूतजी ! आप सम्पूर्ण सिद्धान्तोंके ज्ञाता हैं। प्रभो ! मुझसे पुराणोंकी कथाओंके सारतत्त्वका विशेषरूपसे वर्णन कीजिये। ज्ञान और वैराग्य-सहित भक्तिसे प्राप्त होनेवाले विवेककी वृद्धि कैसे होती है ? तथा साधुपुरुष किस प्रकार अपने काम क्रोध आदि मानसिक विकारोंका निवारण करते हैं? इस घोर कलिकालमें जीव प्रायः आसुर स्वभावके हो गये हैं, उस जीवसमुदायको शुद्ध (दैवी सम्पत्तिसे युक्त) बनानेके लिये सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है ? आप इस समय मुझे ऐसा कोई शाश्वत साधन बताइये, जो कल्याणकारी वस्तुओंमें भी सबसे उत्कृष्ट एवं परम मङ्गलकारी हो तथा पवित्र करनेवाले उपायोंमें भी सर्वोत्तम प