02. विद्येश्वरसंहिता || 01. प्रयागमें सूतजीसे मुनियोंका तुरंत पापनाश करनेवाले साधनके विषयमें प्रश्न
श्री पुराण पुरुषोत्तमाय नमः। श्रीशिवमहापुराण श्री गणेशाय नमः। विद्येश्वरसंहिता प्रयागमें सूतजीसे मुनियोंका तुरंत पापनाश करनेवाले साधनके विषयमें प्रश्न जातसमानभाव मार्य मीमजराणरमात्मदेवम् । पञ्चाननं प्रवरूपञ्चविनोदशीलं सम्भावये मनसि शंकरमम्बिकेशम् ।। जो आदि और अन्तमें (तथा मध्य में भी) नित्य मङ्गलमय हैं, जिनकी समानता अथवा तुलना कहीं भी नहीं है, जो आत्माके स्वरूपको प्रकाशित करनेवाले देवता (परमात्मा) हैं, जिनके पाँच मुख हैं और जो खेल-ही खेलमे- अनायास जगत्की रचना, पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरूप पाँच प्रबल कर्म करते रहते हैं, उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर ईश्वर अम्बिकापति भगवान् शंकरका में मन-ही-मन चिन्तन करता हूँ। व्यासजी कहते हैं जो धर्मका महान् क्षेत्र है और जहाँ गङ्गा-यमुनाका संगम हुआ है, उस परम पुण्यमय प्रयाग, जो ब्रहमलोकका मार्ग है, सत्यव्रतमें तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी महाभाग महात्मा मुनियोंने एक विशाल ज्ञानयज्ञका आयोजन किया। उस ज्ञानयज्ञका समाचार सुनकर पौराणिक-शिरो