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शिव शाबर तंत्र

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शाबर तंत्र शाबर मंत्रों में केवल मंत्र का प्रयोग होता है जबकि शाबर तंत्रों में मंत्र का प्रयोग तो होता ही है साथ में यंत्रों का, विशिष्ट वस्तुओं का, रसायनों आदि का भी प्रयोग होता है। साधक को चाहिए कि शाबर तंत्र को सिद्ध कर अपना कल्याण करें, साथ ही दूसरों का भी कल्याण करें। दीपावली का पर्व हो और शाबर मंत्र तंत्र की चर्चा न हो ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि दीपावली की महानिशा मंत्र तंत्र को सिद्ध करने के लिए सर्वश्रेष्ठ एवं उपयोगी निशा होती है। सारी रात जागकर इस रात सभी तांत्रिक अपनी-अपनी तंत्र साधना करते हैं। अन्य वैदिक पौराणिक तथा तांत्रिक मंत्रों और मांत्रिक तांत्रिक की तुलना में शाबर मंत्र के लिए शाबर तंत्र और शाबर तांत्रिकों के लिए यह रात अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं वर्ष में केवल एक बार मिलनेवाली रात होती है। शाबर तांत्रिक इस महानिशा को अपने शाबर तंत्रों को सिद्ध करने में परम सौभाग्यशाली समझते हैं, क्योंकि शाबर मंत्र, शाबर तंत्र दीपावली की महानिशा में ही सिद्ध किये जाते हैं। वर्ष में कुछ पर्व और भी हैं, जिनमें शाबर तंत्र सिद्ध किये जाते हैं, किंतु शाबर तंत्र को सिद्ध करने के लिए

02. विद्येश्वरसंहिता || 05 - 08 तक || भगवान् शिव लिङ्ग एवं साकार विग्रहकी पूजाके रहस्य तथा महत्त्वका वर्णन

02. विद्येश्वरसंहिता  || 05 - 08 तक || भगवान् शिव लिङ्ग एवं साकार विग्रहकी पूजाके रहस्य तथा महत्त्वका वर्णन सूतजी कहते हैं  शौनक ! जो श्रवण, कीर्तन और मनन -इन तीनों साधनोंके नित्य अनुष्ठान में समर्थ न हो, वह भगवान् शंकरके लिङ्ग एवं मूर्तिकी स्थापना करके उसकी पूजा करे तो संसार-सागरसे  पार हो सकता है। वञ्चना अथवा छल न करते हुए अपनी शक्तिके अनुसार धनराशि ले जाय और उसे शिवलिङ्ग अथवा Preमूर्ति सेवाके लिये अर्पित कर दे। साथ ही निरन्तर उसलिंग एवं मूर्तिकी पूजा भी करे। उसके लिये भक्तिभावसे मण्डप, गोपुर, तीर्थ, मठ एवं क्षेत्रकी स्थापना करे तथा उत्सव रचाये । वस्त्र, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप तथा पूआ और शाक आदि व्यञ्जनोंसे युक्त भाँति-भाँति के भक्ष्य भोजन अन्न नैवेद्यके रूपमें समर्पित करे। छञ, ध्वजा, व्यजन, वामर तथा अन्य अङ्गसहित राजोपचारकी भाँति सब सामान भगवान् शिवके लिङ्ग एवं मूर्तिको चढ़ाये प्रदक्षिणा, नमस्कार तथा यथाशक्ति जप करे। आवाहनसे लेकर विसर्जनतक सारा कार्य प्रतिदिन भक्तिभावसे सम्पन्न करे। इस प्रकार शिवलिङ्ग अथवा शिवमूर्ति भगवान् शंकरकी पूजा करनेवाला पुरुष श्रवणादि साधनोंका अनुष्ठान न करे त

02. विद्येश्वरसंहिता || 03 - 04 साध्य साधन आदिका विचार तथा श्रवण, कीर्तन और मनन - इन तीन साधनोंकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन

02. विद्येश्वरसंहिता  || 03 - 04  साध्य साधन आदिका विचार तथा श्रवण, कीर्तन और मनन - इन तीन साधनोंकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन व्यासजी कहते हैं सूतजीका यह वचन सुनकर वे सब महर्षि बोले- 'अब आप हमें वेदान्तसार- सर्वस्वरूप अद्भुत शिवपुराणकी कथा सुनाइये।' सूतजीने कहा आप सब महर्षिगण रोग-शोकसे रहित कल्याणमय भगवान् शिवका स्मरण करके पुराणप्रवर शिवपुराणकी, जो वेदके सार तत्त्वसे प्रकट हुआ है, कथा सुनिये शिवपुराणमें भक्ति, ज्ञान और वैराग्य- इन तीनोंका प्रीतिपूर्वक गान किया गया है और वेदान्तवेद्य सहस्तुका विशेषरूपसे वर्णन है। इस वर्तमान कल्पमें जब सृष्टिकर्म आरम्भ हुआ था, उन दिनों छः कुलोंके महर्षि परस्पर वाद-विवाद करते हुए कहने लगे- 'अमुक वस्तु सबसे उत्कृष्ट है और अमुक नहीं है।' उनके इस विवादने अत्यन्त महान् रूप धारण कर लिया। तब वे सब-के-सब अपनी शङ्काके समाधानके लिये सृष्टिकर्ता अविनाशी ब्रह्माजीके पास गये और हाथ जोड़कर विनयभरी वाणीमें बोले- 'प्रभो! आप सम्पूर्ण जगत्‌को धारण-पोषण करनेवाले तथा समस्त कारणोंके भी कारण हैं। हम यह जानना चाहते हैं कि सम्पूर्ण तत्वोंसे परे परात्पर पुराणपुरु

02. विद्येश्वरसंहिता || 02. शिवपुराणका परिचय

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02. विद्येश्वरसंहिता  || 02. शिवपुराणका परिचय सूतजी कहते हैं साधु महात्माओ ! आपने बहुत अच्छी बात पूछी है आपका यह प्रश्न तीनों लोकोंका हित करनेवाला है। मैं गुरुदेव व्यासका स्मरण करके आपलोगोके वश इस विषयका वर्णन करूँगा। आप आदरपूर्वक सुनें। सबसे उत्तम जो शिवपुराण है, वह वेदान्तका सारसर्वस्व है तथा वक्ता और श्रोताका समस्त पापराशियोंसे उद्धार करनेवाला है। इतना ही नहीं, वह परलोकमें परमार्थ वस्तुको देनेवाला है, कलिकी कल्मषराशि का विनाश करने वाला है। उसमें भगवान् शिवके उत्तम यशका वर्णन है। ब्राह्मणो ! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चारों पुरुषार्थोको देनेवाला वह पुराण सदा ही अपने प्रभावकी दृष्टिसे वृद्धि या विस्तारको प्राप्त हो रहा है।  विप्रवरो ! उस सर्वोत्तम शिवपुराणके अध्ययनमात्रसे वे कलियुगके पापासक्त जीव श्रेष्ठतम गतिको प्राप्त हो जायेंगे। कलियुगके महान् उत्पात तभीतक जगत में निर्भय होकर विचरेंगे, जबतक यहाँ शिवपुराणका उदय नहीं होगा। इसे वेदके तुल्य माना गया है। इस वेदकल्प पुराणका सबसे पहले भगवान् शिवने ही प्रणयन किया था। विद्येश्वरसंहिता, रुद्रसंहिता, विनायकसंहिता, उमासंहिता, म