शिव शाबर तंत्र

शाबर तंत्र

शाबर मंत्रों में केवल मंत्र का प्रयोग होता है जबकि शाबर तंत्रों में मंत्र का प्रयोग तो होता ही है साथ में यंत्रों का, विशिष्ट वस्तुओं का, रसायनों आदि का भी प्रयोग होता है। साधक को चाहिए कि शाबर तंत्र को सिद्ध कर अपना कल्याण करें, साथ ही दूसरों का भी कल्याण करें।
दीपावली का पर्व हो और शाबर मंत्र तंत्र की चर्चा न हो ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि दीपावली की महानिशा मंत्र तंत्र को सिद्ध करने के लिए सर्वश्रेष्ठ एवं उपयोगी निशा होती है। सारी रात जागकर इस रात सभी तांत्रिक अपनी-अपनी तंत्र साधना करते हैं। अन्य वैदिक पौराणिक तथा तांत्रिक मंत्रों और मांत्रिक तांत्रिक की तुलना में शाबर मंत्र के लिए शाबर तंत्र और शाबर तांत्रिकों के लिए यह रात अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं वर्ष में केवल एक बार मिलनेवाली रात होती है। शाबर तांत्रिक इस महानिशा को अपने शाबर तंत्रों को सिद्ध करने में परम सौभाग्यशाली समझते हैं, क्योंकि शाबर मंत्र, शाबर तंत्र दीपावली की महानिशा में ही सिद्ध किये जाते हैं। वर्ष में कुछ पर्व और भी हैं, जिनमें शाबर तंत्र सिद्ध किये जाते हैं, किंतु शाबर तंत्र को सिद्ध करने के लिए सर्वश्रेष्ठ रात्रि दीपावली की महानिशा होती है। 

काली भयानक महानिशा में श्मशान वासी खर्पराशि महाअघोरेश्वर शकंर जी भी अपनी शक्ति महाकाली की मंत्र साधना करते हैं। जब स्वयं समस्त मंत्रों तंत्रों को निर्माता, रचयिता, प्रचारक एवं सर्वश्रेष्ठ तंत्र साधक शंकर जी ही अपने स्त्रेश्वर स्वरूप को अघोरेश्वर रूप को धारण करके मंत्र साधना करते हैं तो हम मानव अपनी तंत्र साधना क्यों न करें। श्मशान की जलती चिता से शव की भष्म निकालकर समस्त शरीर पर लप करक और शव का उतरा वस्त्र धारण कर शव की अधजली हड्डियों को लेकर श्मशान भूमि पर महामंत्र की साधना करते मैंने न जाने कितने साधकों को देखा है। इस महानिशा में शायद ही कोई श्मशान हो, शायद ही किसी नगर का श्मशान हो जिसमें शाबर तंत्र साधना करनेवाले शाबर तांत्रिकों का मेला न लगा हो। दीपावली का पर्व हर्षोल्लास से सारे विश्व में मनाया जाता है। यह सत्य है तो यह भी सत्य है कि दीपावली की महानिशा को तमाम तांत्रिक गण श्मशान में या किसी शक्ति पीठ के मंदिर में या कनगाहों में या भैरव मंदिरों में या महाकालेश्वर मंदिर में या शिव मंदिर में या किसी नदी के निर्जन किनारे पर या किसी गुप्त गुफा में या किसी पर्वत शिखर पर अथवा अपने तांत्रिक केंद्र या घर के साधना कक्ष में बैठकर शाबर मंत्र तंत्र की साधना करते हैं। प्रारंभिक स्तर का तांत्रिक क्षेत्र का विद्यार्थी हो, शिष्य हो अथवा बड़े से बड़ा तांत्रिक गुरू हो इस महानिशा का तंत्र साधना में उपयोग अवश्य करते हैं।

शाबर तंत्र-मंत्र का महत्व 
समस्त मंत्रों के प्रणेता शंकरजी एक बार अपनी प्रिया शिवा के साथ कैलाश पर्वत से उतरकर लोक भ्रमण करने के लिए चल पड़े। कलिकाल के प्रभाव को देखने और सदाशिव एवं अद्याशक्ति द्वारा रचित इस सृष्टि का गहन अध्ययन करने पर उन्हें लगा की ब्राह्मण, पंडित, साधु- संन्यासी, योगी आदि अपने पूर्व एवं निश्चित कर्तव्यों से च्युत होते जा रहे हैं। जहां-तहां वेद पाठ, मानस पाठ तथा सत्संग तो हो रहे हैं, किंतु व्यक्ति उन पाठों को शुद्ध अशुद्ध जैसा बन पड़ रहा था वैसा कर रहा था। मंत्र-तंत्र चाहे वह वैदिक हों या तांत्रिक उनका जाप भी लोग कर रहे थे, परंतु वे मंत्रों का उच्चारण और ध्वनियां अशुद्ध कर रहे थे। शंकरजी को क्रोध आ गया उन्होंने पार्वतीजी से कहा, " अब मैं इन वैदिक तांत्रिक मंत्रों को कीलित कर देता हूं, (कीलित का अर्थ होता है कील देना अर्थात् बंद कर देना) कीलित कर देने से इन मंत्रों के जाप का कोई शुभ अशुभ प्रभाव नहीं पड़ेगा। अब यह आवश्यक हो गया है। "

पार्वतीजी की शंका निर्मूल नहीं, महत्वपूर्ण थी। शंकरजी ने कहा, "इस कलिकाल में सभी मेरे द्वारा बनाए गये मंत्रों का जाप नहीं कर सकेंगे। हां, अब मैं इन वैदिक तथा तांत्रिक मंत्रों के उत्कीलन की विधि भक्तजनों को बताऊंगा। जो इन मंत्रों को विधिवत उत्कीलन कर लेगा वही सही ढंग से मंत्रों का जाप कर सकेगा और उसी वैदिक और तांत्रिक मंत्रों का सुफल भी प्राप्त होगा। "

तभी से सारे वैदिक एवं तांत्रिक मंत्र उत्कीलन करने पर ही अपना फल देने में सफल हो सकें। अन्यथा सभी मंत्र शंकरजी द्वारा कीलित कर दिये गये हैं।

पृथ्वी का भ्रमण करते-करते वे लौट रहे थे तो देखा कि एक निर्जन स्थान पर एक पहाड़ी गुफा के अंदर एक शिव भक्त उन्हीं का लिंग स्वरूप बनाकर मंत्र जाप कर रहा था। मंत्र क्लिष्ट था इसलिए वह उनका अशुद्ध उच्चारण कर रहा था। शंकर जी ने कहा, "देख रही हो ये मेरा भक्त है, फिर भी मेरा ही मंत्र अशुद्ध जप रहा है, इससे इसको अशुभ फल मिलेगा और यह सिद्धि पाने की जगह मृत्यु को प्राप्त कर लेगा। मरने के बाद भी इसको शांति नहीं मिलेगी। "

माता जगदम्बा ने महादेव से तर्क किया, "यह आपका भक्त है। इसकी भक्ति और बन्दा पर तो विश्वास नहीं किया जा सकता। यदि अशुद्ध मंत्र जपने से यह मर गया या इसका कुछ भी अनिष्ट हो गया तो सारा दोष पाप आप को ही लगेगा। आपने ही तो वैदिक एवं तांत्रिक मंत्र को इतना क्लिष्ट बना दिया है कि सामान्य व्यक्ति उसका जाप न कर सके। इसके साथ ही सामान्य व्यक्ति के पास और साधन ही क्या है।"

महादेव को पार्वती की बात तर्क संगत लगी। वे ब्राह्मण का वेश धारण करके उस भक्त के पास गये। उन्होने उसे मंत्र उच्चारण का दोष बताया। फिर स्वयं उस भक्त के अनुरोध पर सरल भाषा का मंत्र बनाकर दिया और उसका जाप करने को कहा। भक्त ने अपनी भूल स्वीकार कर नये सरल मंत्र का जाप प्रारंभ कर दिया। बाद में वही भक्त उस सरल मंत्र का जाप कर सिन्द्व हो गया। वही पहला 'सिद्ध' अथवा 'नाथ' कहलाया। उसके द्वारा ही नाथ संप्रदाय प्रारंभ हुआ।

तब जगत का कल्याण करनेवाली मातेश्वरी पार्वती जी ने महादेव से कहा, " हे महादेव! आप संपूर्ण बृहद् शाबर मंत्रों- तंत्रों और यंत्रों का मुझसे वर्णन कीजिए। "

प्रिया की बात सुनकर देवाधिदेव महादेव ने सप्रेम कहा, "हे प्राणेश्वरी पार्वती जितने शाबर मंत्र, तंत्र और यंत्र हैं। जिनके द्वारा समस्त कामनाएं सिद्ध हो जाती हैं। उन सभी को हम तुमसे कहते हैं। तुम पूर्ण ध्यान एवं शांत चित्त होकर सुनो।' "

वक्षाम्यहं शाबराणि मंत्र-तंत्राणि पार्वति । 
सर्वकाम प्रसाधीनि ऋणुष्वा प्रिये ।।

और फिर समस्त कार्यों की सिद्ध के लिए मंत्रों का सरलीकरण करके पार्वती जी को सुना दिया मंत्रों तंत्रों एवं यंत्रों के सरलीकरण हो जाने के कारण ही यह मंत्र तंत्र शाबर मंत्र या शाबर तंत्र के नाम से जाने गये। सरल होने के कारण ही ये शाबर या साबर मंत्र, यंत्र कहलाये। इन मंत्रों में वैदिक एवं तांत्रिक मंत्रों से कहीं ज्यादा शक्ति निहित है और यह सरलता से जपे तथा उच्चारित किये जा सकते हैं। चूंकि इन्हें स्वयं देवाधिदेव शकंर जी ने कलियुग के प्राणियों के लिए बनाए हैं, इसलिए इनका महत्व वैदिक तथा तांत्रिक मंत्रों से कम नहीं है। कलिकाल में तो इनकी साधना और सिद्धि प्रत्यक्ष देखने को मिलती है इनकी साधना में सिद्धि में अधिक समय भी नहीं लगता और न अधिक धन ही व्यय होता है और इसका प्रयोग भी सरल है जिसे प्रत्येक सामान्य व्यक्ति कर सकता है।

शाबर मंत्रों की प्रमुख विशेषता यह है कि इन्हें सिद्ध करने में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता। ये स्वयं सिद्ध माने जाते हैं। इनको उत्कीलन करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती न्यास, ध्यान, विनियोग आदि पड़ती। की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। ये छोटे-बड़े सभी प्रकार के हैं। इन्हें हर जाति, वर्ग और धर्म का व्यक्ति सिद्ध करके प्रयोग कर सकता है। शाबर मंत्रों का प्रयोग भी सरल होता है। इनके लिए किसी विशेष आयोजन एवं कर्मकांड की आवश्यकता नहीं पड़ती। सामान्य स्त्री-पुरुष एवं बच्चे भी इनको सिद्ध करके प्रयोग कर सकते हैं। शाबर मंत्र जीवन के छोटे से छोटे कार्यों से लेकर बड़े से बड़े कार्यों की सफलता एवं सिद्धि के लिए प्रयोग किये जाते हैं। उदाहरणार्थ दांत दर्द, आंख दर्द, हर प्रकार के ज्वर, फोड़ा, पुंसी, दाद, खाज, बवासीर, नजर उतारने से लेकर मारण प्रयोग तक तथा किसानों की व्यापारियों की हर समस्या का निदान किया जाता है। एक वाक्य में कहा जाये तो यही कहा जाएगा कि शाबर मंत्रों का प्रयोग जीवन की छोटी से छोटी समस्या से लेकर बड़ी से बड़ी समस्या के समाधान के लिए किया जाता है।

शाबर मंत्रों में केवल मंत्रों का प्रयोग होता है, जबकी शाबर तंत्रों में मंत्र का प्रयोग तो होता ही है साथ में यंत्रों का, विशिष्ट वस्तुओं का, रसायनों का, पशु पक्षियों का और उनके विभिन्न अंगों का प्रयोग भी होता है। इन शाबर तंत्रों में धार्मिक एवं तांत्रिक कर्मकांडों की तरह का आयोजन भी होता है। इसके प्रयोग में कुछ स्थान विशेष का भी महत्व होता है। जैसे कुछ क्रियाएं श्मशान में करनी होती है, कुछ जलाशय में की जाती हैं, कुछ गोशाला में की जाती है। कुछ विशिष्ट वृक्षों के नीचे, कुछ शयनागार, स्नानागार में की जाती है। विभिन्न शाबर तंत्रों में विभिन्न स्थानों का अपना विशेष महत्व होता है।

इसी तरह शाबर तंत्रों में विभिन्न औषधियों का प्रयोग होता है। शाबर तंत्र का काफी विस्तृत स्वरूप है। उलूक तंत्रम, दीपक तंत्रम, औषधि तंत्रम, बलि तंत्रम, श्मशान तंत्रम आदि तंत्र की विभिन्न शाखाएं उपशाखाएं इसी शाबर तंत्र के अंतर्गत आती हैं।

शाबर तंत्रम में कुछ क्रियाएं ऐसी भी हैं जिनमें किसी प्रकार का कोई मंत्र प्रयुक्त नहीं होता और न कोई यंत्र ही प्रयोग में आता है। ऐसे साबर मंत्र में केवल कुछ सामग्री या रासायन की ही आवश्यकता होती है। जैसे वशीकरण के लिए कोई अपने मुंह में रात भर सहगी सुपाड़ी रक्खे रहे और दूसरे दिन उसे काटकर पान में अपने उस पुरुष या स्त्री को खिला दे जिसका वशीकरण वह करना चाहता या चाहती है। यदि पान में कत्थे के साथ अपनी अनामिका का आधा या ज्यादा से ज्यादा एक बूंद खून मिला दे तो निश्चित ही वशीकरण होता है इसी प्रकार के हजारों प्रयोग किये जाते हैं। जिनमें किसी प्रकार के मंत्र यंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता फिर भी इन्हें शाबर मंत्र बोला जाता है।

इतना ही नहीं गंदी, दूषित, घृणित तथा अश्लील समझी जानेवाली वस्तुओं का प्रयोग तथा स्त्री-पुरुष द्वारा अनैतिक, अपवित्र समझे जानेवाली क्रियाएं भी तंत्र-मंत्र के साथ या बिना तंत्र-मंत्र के संचालित की जाती हैं, जिनको अभिचार कर्म कहा जाता है। ऐसी क्रियाएं गोपनीय होती हैं। ऐसी शाबर तंत्र की क्रियाओं को भले ही समाज गंदा या अनैतिक या दूषित समझे, परंतु ऐसी क्रियाओं का प्रभाव बड़ा ही अनुकूल एवं प्रभावशाली होता है शावर तंत्रम का प्राचीन इतिहास बड़ा ही रहस्यमय एवं गोपनीय रहा है। पाठकों को जो भी तंत्र साधनाएं पढ़ने या देखने को मिलती है वे सामाजिक, धार्मिक, नैतिक मूल्यों के अनुकूल समझी जानेवाली होती हैं, क्योंकि आधुनिक नियमों कानून के दायरे तांत्रिकों पर शिकंजा कसे रहते हैं। शाबर तांत्रिक अब भी हर प्रकार की तंत्र क्रियाएं करते हैं, किंतु बताते नहीं क्योंकि बताने में रहस्य खुल जाने का भय तो रहता ही है साथ ही कुछ कानूनी बाधाएं भी आती हैं तो कुछ सामाजिक भय की भी आशंका रहती है। लिखने को तंत्र साहित्य में कुछ या सब कुछ लिखा गया है या लिखा जा सकता है, किंतु क्रिया रूप में उसे प्रकट नहीं किया जाता इसीलिए ऐसी अश्लील, घृणित, क्रियाओं का वर्णन पढ़कर भी पाठक उनकी वास्तविकता पर विश्वास नहीं करता। यह अच्छा भी है। मैं तो ऐसी क्रियाओं का वर्णन भी नहीं कर सकता जो मेरे पाठकों को अश्लील एवं घृणित लगे। हां, पाठकों को उपर्युक्त वर्णन से इतना बता देना चाहता हूं कि शावर तंत्रम में कोई भी वस्तु, पात्र, स्थान, क्रिया और कर्ता दूषित या घृणित नहीं समझा जाता वहां केवल लक्ष्य को ही ध्यान में रखा जाता है। जैसे यह कहा जाता है कि प्रेम और युद्ध में सब कुछ जायज होता है उसी तरह शावर तंत्र में तंत्र की सफलता के लिए सब कुछ जायज है। भले ही उसे कोई एक व्यक्ति या संपूर्ण समाज उचित समझे या अनुचित समझे। इसकी परवाह एक सिद्ध शाबर तांत्रिक को कदापि नहीं होती। क्योंकि एक तांत्रिक एक सामाजिक प्राणी होते हुए भी अन्य सामाजिक प्राणियों से अपने को भिन्न मानता है। यही नहीं अपने को अलग श्रेष्ठ और सुपरमैन मानता है।

मैं अपने इस लेख में शावर तंत्रम का परिचय मात्र दे रहा हूं। क्योंकि हजार पृष्ठ लिखने पर भी शाबर तंत्रम की पूर्णता नहीं कर पाऊंगा। अपने पाठकों के लिए मैं कुछ सात्विक, शीलगुण वाले, सरल एवं घर परिवार में करने योग्य शाबर मंत्रों का विवरण ही दूंगा। पाठक चाहे तो इनके आजमाकर देख सकते हैं। इसके साथ यह भी कहना चाहूंगा कि किसी भी तांत्रिक प्रयोग को करने के पूर्व यदि मुझसे या अपने गुरू से या किसी योग्य तांत्रिक से या किसी विद्वान से परामर्श ले लें तो उचित होगा।

पाठकों को चाहिए की जब किसी तंत्र को प्रयोग करें तो अपने गुरु से पूछ लें और उनके मुंह से समझ लें। ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि गुरू के मुंह से सुनने और उनकी आज्ञा लेकर करने में गुरू की शक्ति, गुरू की भावना तंत्र-मंत्र की सफलता सुनिश्चित करती है। शाबर मंत्रों में आप हर मंत्रों के बाद पढ़ते होंगे ""पिण्ड सांचा' शब्द सांचा मेरी भक्ति गुरू की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा' अथवा 'नमो आदेश गुरू का'।" वैसे तो सर्वधर्म, सर्व तंत्र-मंत्र में गुरू का महत्व साधक के जीवन में सर्वोपरि होता है बिना गुरु के ज्ञान होता ही नहीं, फिर भी शाबर तंत्रम में सबसे अधिक गुरू का महत्व है। गुरु की शक्ति से ही मंत्र चलता है और उसकी सफलत सुनिश्चित होती है।

इसीलिए किसी भी शाबर मंत्र को सिद्ध करने के पूर्व गुरू का मंत्र जिसे सुमेरु मंत्र भी कहते हैं को एक सौ आठ बार जपकर सिद्ध कर लेना चाहिए और जब कोई भी तांत्रिक क्रिया प्रारंभ करे तो अपने गुरू का ध्यान करके गुरू का निम्नांकित मंत्र कम से कम ११ बार जप लेना चाहिए। उसके बाद ही अपनी वह तांत्रिक क्रिया प्रारंभ करनी चाहिए जिसकी योजना है।

गुरुमंत्र
गुरू सठ गुरू हठ गुरू है वीर
गुरु साहब सुमिरों बड़ी भांत
सिंगी टोरों बन कहों
मन नाऊं करतार
सकल गुरून की हर भजे
घट्टा पकर उठ जाग चेत 
सम्भार श्री परमहंस । 

शाबर मंत्र जैसे लिखे हों वैसे ही पढ़ने चाहिए। उनके शुद्ध - अशुद्ध पर ध्यान नहीं देना चाहिए। जहां तक हो सके संपूर्ण मंत्र को एक साथ बिना ठहरे पढ़ना या जपना या प्रयोग करना चाहिए शाबर मंत्रों की भाषा तथा व्याकरण आदि को अपने से कदापि शुद्ध नहीं करना चाहिए और न ही कुछ जोड़ना या कम करना चाहिए। 

पाठकों के लिए सर्वपर्थम एक बहुउपयोगी आत्म रक्षा मंत्र देता हूं। इसे मेरे आदर्श पुरुष पंडित देवदत्त शास्त्री ने प्रयाग में मुझे बताया था और अपनी पुस्तक में लिखा भी है । पाठकों को चाहिए कि इसे सर्वप्रथम सिद्ध कर लें और कोई भी तांत्रिक क्रिया करते समय अवश्य प्रयोग करें। 

आत्मरक्षा का मंत्र

ॐ नमो आदेश गुरन को ईश्वर वाचा 
अजरी बजरी बाड़ा बज्जरी मैं बज्जरी बांधा दशौ दुवारछवा 
और के घालों तो पलट हनुमंत बीर उसी कों मारे 
पहली चौकी गनपती दूजी चौकी हनुमन्त तीजी चौकी में 
भैरों चौथी चौकी देत रक्षा करन को आवें श्रीनरसिंहदेव जी 
शब्द सांचा पिंड सांचा चले मंत्र ईश्वरी बाचा।

निर्देश- 1 
ये मंत्र अत्यंत ही उपयोगी है। जहां कहीं भी हो (घर, बाहर, श्मशान, जंगल आदि) इस मंत्र का जाप कर बैठ जाएं या रात्रि में सो जायें तो किसी भी प्रकार से कोई भी आघात करनेवाला चाहे वो हिंसक जानवर हो, वध करने वाले हों, लूटनेवाले हों, चाहे वो कोई भी क्यों न हों दूर ही खड़ा रहेगा पास नहीं आ पाएगा। इस मंत्र को पढ़ते हुए एक रेखा अपने चारों ओर खींचने या जल छिड़कने से वह सुरक्षा कवच का कार्य करती है।

2- व्याधि से पीड़ित व्यक्ति या किसी भी प्रकार के असहनीय दर्द से पीड़ित व्यक्ति हो या शरीर में अकड़न अथवा मूर्च्छा आ जाये तो यह मंत्र अत्यंत ही प्रभावशाली ढंग से कार्य करता है और व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ हो जाता है।

3- यदि घर में रहनेवाले व्यक्ति को कष्ट एवं समस्याएं हमेशा घेरे रहती हैं तथा उस घर में हमेशा ही धन एवं संपदा की कमी ही रहती है। उस घर को ग्रहदोष से मुक्त करने के लिए घर में जितने दरवाजे हों उतनी लोहे की कीलों एवं उर्द की दाल को इस मंत्र से अभिमंत्रित करके घर के सबसे अंदर वाले कमरे में घुसकर उर्द के दालों को कमरे में मंत्र पढ़ते हुए फेंके और उसके बाद दरवाजे से निकलते हुए एक कील जमीन में गाड़ दे। इसी प्रकार क्रमशः हर कमरे में उर्द की दाल छिड़के और दरवाजे पर कील गाड़ते हुए मुख्य द्वार पर आएं एवं अंत में वहां भी कील ठोंक दें यदि घर में आंगन या बरामदा हो तो वहां भी उर्द की दाल छिड़कें, जल्दी ही वह घर ग्रह दोष से मुक्त हो जाएगा।

शाबर तंत्र या किसी भी प्रकार की साधना करने के पूर्व साधक को अपनी रक्षा के लिए इस मंत्र का प्रयोग अवश्य कर लेना चाहिए। एक तरफ यह मंत्र जहां साधक की रक्षा करता है वहीं दूसरी ओर साधना के दौरान आनेवाले विघ्न बाधाओं को भी दूर करता है। आत्मरक्षा तंत्र के लिए साधक जिस स्थान पर बैठकर साधना करेगा उस स्थान को सर्वप्रथम गोबर से लीपकर शुद्ध कर लें तत्पश्चात् अपने बैठने एवं पूजन सामग्री आदि रखने के स्थान तक की जगह पर चारों तरफ एक घेरा बना लें। लकड़ी की चार खूंटी बनाकर चारों कोनों में लगा दें। तंत्र मंत्र की भाषा में इन चौकियों की खूंटी बोला जाता है। इन खूंटियों को लगाते समय पहली खूंटी में गणेश जी, दूसरी में हनुमानजी, तीसरी में भैरवजी एवं चौथी खूंटी में नरसिंह भगवान का साधक को मन ही मन ध्यान एवं स्तुति करना चाहिए।

तत्पश्चात् पहली खूंटी से अंतिम खूंटी तक कच्चे सूत्र को तीन बार लपेटकर एक घेरा सा बना लें आत्मरक्षा तंत्र बनाते समय साधक को उक्त मंत्र का पाठ करना चाहिए। प्रत्येक खूंटी की पूजा चंदन, अक्षत, धूपदीप, नैवेद्य आदि से देव प्रतिमा की तरह कर लें। प्रत्येक खूंटी में उसी देवता का ध्यान और नाम लेकर पूजा होना, व्यापार, सर्विस, कृषि आदि में सफलता तथा बाधा दूर होना आदि। 
करें, जिसके नाम से खूंटी गाड़ी गयी है। चौकी या चौका बना लेने के बाद साधक पूजा की समस्त सामग्री और जिस तांत्रिक साधना को करने जा रहा है। उसमें प्रयुक्त होनेवाली समस्त सामग्री लेकर ही बैठें ताकी तंत्र साधना संपूर्ण होने तक उसे अपने सुरक्षा घेरे यानी चौकी से बाहर न निकलना पड़े।

किंतु आत्मरक्षा का तंत्र सिद्ध करने के लिए उसे अभी पूजन सामग्री और जप के लिए माला तथा जपमाली ही ले जाना होगा। सर्वप्रथम रक्षाकवच चौकी बनाना, चारों देवताओं का ध्यान पूजन सीख लें। अभ्यास कर ले और १९ दिनों तक नित्य एक हजार मंत्र जपकर सिद्ध अवश्य कर लें। नवरात्र में यह क्रिया नौ दिन में ही कर सकते हैं। नवे दिन इसी मंत्र या चारों देवताओं के वेद मंत्र या शाबर मंत्र से हवन कर लें।

शांति पुष्टि कर्म
इसके अंतर्गत हमारे जीवन के वे कार्य आते हैं, जिनमें हमारा निजी जीवन स्वास्थ्य की रक्षा होती है और घर की खुशियां बढ़ती हैं। धन धान्य बढ़ना, परिवार सुखी होना, व्यापार, सर्विस, कृषि आदि में सफलता तथा बाधा दूर होना आदि।
सर्वप्रथम बच्चों से प्रारंभ करता हूं। बच्चों को नज़र टोना बहुत जल्दी लग जाता है। बच्चे दूध पीना छोड़ देते हैं, बीमार हो जाते हैं और रोते या मिनमिनाते रहते है। यह न सोचिए की नजर केवल दूसरों की ही लगती है। अपनों की, अपने माता-पिता की नजर भी लगती है और प्रायः लग जाती है। इसके लिए प्रत्येक परिवार में किसी न किसी को नजर उतारने का यह तंत्र मंत्र सिद्ध कर लेना चाहिए जिससे किसी दूसरे के पास बार बार जाने की आवश्यकता न पड़े। औरतें भी इस मंत्र को सिद्ध कर सकती हैं।

पानी तीनि पानी ब्रह्मा विष्णु महेश्वर जानी शिव शक्ति आदि कुमारी 
अब छार भार सब तोही की ताई, कतहु का होउ बैले आउ, 
बालक के तोहे, मोके पुत्र जब होए, 
महादेव के जटा परे, पार्वती के आंचर परे, जो यह बालक दुख पावे तो दुश्मन का दिल घालै।

उक्त मंत्र की जप संख्या 11 माला है। इसके साथ निम्न मंत्र भोजपत्र या कागज पर बनाकर सामने रख लें। काला डोरा रख लें, तांबे की ताबीज रख लें और एक कटोरी में जल रख लें, तब मंत्र जपें मंत्र पूर्ण होने पर एक माला से हवन करें। अब भोजपत्र पर बने यंत्र को धुएं से धूपित कर लें। ताबीज में भरकर काले धागे में ताबीज को डाल दें। फिर एक बार हवन में धूपित करके बच्चे के गले में बांध दें। इस क्रिया के बाद पहले तो नजर लगेगी नहीं फिर भी यदि लगे तो मंत्र द्वारा 21 बार फूंक मारते हुए बच्चे के शरीर पर हाथ फेरता रहे। इतवार या मंगलवार को इस मंत्र का प्रभाव शीघ्र होता है। किसी अन्य के बच्चे की भी नजर उतारी जा सकती है।

कोई बच्चा, बालक, युवक युवती यदि स्वप्न में चौकता हो तो भी इस मंत्र को उसको धारण करा देने से उसका चौकना बंद हो जाएगा। व्यापार बुद्धि यंत्र चलता हुआ व्यापार यदि कमजोर हो जाये या बिक्री में बाधा आ जाये, तो निम्न तांत्रिक प्रयोग करना चाहिए। यंत्र मंत्र पहले से सिद्ध किये रहें।

भोजपत्र पर निम्न यंत्र बनावें और उसको सिद्ध करके दूकान में लगा दें फिर सिद्ध की हुई पीली सरसों और काली उर्द को दूकान के हर कोने में फेंकते हुए निम्न मंत्र पढ़ता जाये इसे हर इतवार मंगल को करना चाहिए।

भंवर वीर तू चेला मेरा, खोल दूकान कहा कर मेरा। 
उठे जो डण्डी बिके जो माल, भंवर वीर की सौ नंहि जाय।। 

इतवार या मंगलवार को इसी मंत्र से मंत्रिक करके नीबू और लाल हरी मिर्च की माला दूकान के सामने बांध दें -
व्यापार वृद्धि के लिए एक यह भी प्रयोग अनुभूत है। बड़े व्यापार के लिए इसे ही प्रयोग करें। धनतेरस के दिन प्रातः किसी नदी या तलाब से गीली मिट्टी लाकर उसमें काला रंग मिलाकर महाकाली की मूर्ति बनाएं, यदि मूर्ति बनाने में असमर्थ हो तो काली जी की बनी बनाई मिट्टी की मूर्ति बाजार से ले आएं। भोजपत्र पर काली जी का यंत्र बनाएं या पहले से सिद्ध काली जी का तांबे पर बना बनाया यंत्र ले लें। मूर्ति और यंत्र की विधि पूर्वक पूजा करें सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक किसी भी विधि से पूजा कर सकते हैं। काली जी का कोई भी स्तोत्र या चालीसा का पाठ करें फिर निम्न मंत्र का जाप 11 माला करें, एक माला से हवन करें। परीवा के दिन प्रतिष्ठान में किसी ऊंचे स्थान पर लाल कपड़े का आसन देकर काली प्रतिमा और काली यंत्र को स्थापित कर दें और नित्य 21 बार इसी मंत्र का जाप करते हुए धूपबत्ती दिखाएं। ठहरा हुआ व्यापार चल निकलेगा। इसमें संदेह नहीं। 

काली कंकाली महाकाली, मरे व सुंदर जिये व्याली।
चार वीर, भैरव चौरासी, तब तो पूंजू पान मिठाई ।
अब बोलो काली की दुहाई, सतनाम गुरु की जय होवे ।

मोहन आकर्षण के लिए 
यदि कोई भाग गया हो या कोई आपके पास न आ रहा हो या किसी प्रिय व्यक्ति को आप अपने पास बुलाना चाहते हों तो यह प्रयोग निम्न प्रकार से करें।

पुतले या पुतली के माथे पर नाम लिखें। उसे गुलाब जल से नहलाएं, इत्र लगाएं, नारी पुतली हो तो उसका सिंदूर, टिकुली, काजल आदि शृंगार सामग्री से शृंगार करें। पुरुष हो तो जैसा कपड़ा वह पहनता हो वैसे कपड़े पहनाएं वैसा शृंगार करें। अर्थात् पुतले पुतली को वैसा ही बना दें जैसा वह रहता हो। फिर उसे धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। उसके सीने पर यह मंत्र भी लिख दें। स्वयं पीले या लाल आसन पर बैठकर १० हजार की संख्या में प्रातः तक निम्न मंत्र का जाप करें। प्रातः उस पुतले को पीले कपड़े से ढंक कर किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें। इस बात का ध्यान रहे कि चूहे, बिल्ली उसे खा न जायें। यदि चाहें तो ढंक दें। तीन दिन तक यह प्रयोग करना है। रविवार से मंगलवार तक गर्मी या बरसात के दिनों में आटा सड़ने का डर हो तो पहले दिन के पुतले को प्रातः विसर्जित कर दें और फिर नये पुतलें बनाएं। अच्छा हो कि नित्य नये पुतले बनाएं।

मंत्र
ॐ नमो देवि आदिरूपा अमुकस्य आकर्षणम कुरु कुरु स्वाहा।

उक्त मंत्र में जहां अमुकस्य लिखा है वहां उस साध्य पुरुष या स्त्री का नाम लें और मोहन करने के लिए अमुकस्य मोहनं कहें वशीकरण करने के लिए अमुकस्य में वश्यं कुरु कुरु स्वाहा कहें। स्तंभन करना हो तो मंत्र वही रहेगा किंतु अमुकस्य स्तंभन टं ठं ठं कुरु स्वाहा कहें।

वैसे तमाम मोहन, आकर्षण, वशीकरण, स्तंभन के शाबर मंत्र है उनमें से किसी मंत्र का प्रयोग कर सकते हैं। किंतु ध्यान रहे कि उस मंत्र में अमुकस्य का स्थन हो और उसी मंत्र का जाप किया जाये और उसी मंत्र को पुतले के सीने पर लिखा जाये। मैंने छोटा मंत्र इसीलिए दिया है जो १० हजार जपा जा सकता है और बड़ी आसानी से पुतले के सीने पर लिखा जा सकता है।

यहां एक विशेष बात लिखना चाहता हूं कि नवार्ण मंत्र के साधक चाहें तो नवार्ण मंत्र से ही यह सारे प्रयोग कर सकते हैं। तब यह मंत्र होगा 
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अमुकस्य आकर्षणम कुरु कुरु स्वाहा।

उपयुक्त ढंग से अमुकस्य आकर्षणम की जगह बदलते जायें तब मोहन आदि के लिए नवार्ण मंत्र बन जाएगा। नवार्ण मंत्र साधक के लिए यह शीघ्र फल दायक प्रयोग साबित होगा।

तीन दिनों बाद नित्य 11 माला 11 दिनों तक जपते रहें यदि 11 दिन में अनुकूल सूचना मिल जाये तो एक एक माला तब तक जपें जब तक प्रयोग सफल न हो जाये। अन्यथा फिर से 11 दिनों बाद पुतला बनाकर प्रयोग कर लें।

विद्वेषण के लिए जब दो व्यक्तियों को अलग करना हो या किसी स्त्री- पुरुष को अलग करना हो तो पुतला + पुतली बनाएं या दो पुतले या पुतली बनाएं। यहां मैं स्त्री पुरुष में विद्वेषण की क्रिया लिख रहा हूं।

प्रायः देखा जा सकता है कि पर नारी मोह या पर पुरुष मोह में पड़कर दाम्पत्य जीवन कटुमय बन जाता है। यह समस्या तो प्राचीन काल से रही है, किंतु आजकल यह समस्या कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है। आये दिन मेरे पास औरतें या उनके माता पिता, भाई-बहन, आते हैं और गिड़गिड़ाते हैं कि उनके पति या उनकी बेटी के पति किसी अन्य युवती के प्रेम में पड़कर अपनी पत्नी को छोड़ रहे हैं या मार-पीटकर दाम्पत्य जीवन नष्ट कर रहे हैं। ऐसे में उन दोनों को अलग करने के लिए पुतली पुतला विद्वेषण क्रिया करना आवश्यक हो जाता है।

आप एक नर और एक नारी का पुतला पूर्ण वर्णित ढंग से बनाएं। उनकी पूजा करें और दोनों के सीने पर निम्न मंत्र लिखें, फिर दोनों पुतलों को एक दूसरे पर लिपटा दें। 10 हजार मंत्र जपें। एक माला जपने के बाद दोनों पुतलों को अलग करें फिर सीने से सीना मिलाकर रख दें, फिर एक माला मंत्र जपकर अलग करें। इसी प्रकार रात भर करते रहें जब मंत्र पूरा हो जाये तो 11 बार मंत्र पढ़ते हुए बार-बार पुतले को मिलायें और अलग करें। 11वीं बार जिस पुतले को अलग करना चाहते हैं उस पुतले या पुतली को हटाकर दूर फेंक दें। अपने प्रिय नामधारी पुतले को सीने वे लगाकर चूमें और सफेद कपड़े में लपेटकर प्रातः विसर्जित कर दें। यदि 10 हजार मंत्र पूरा हो गया है और प्रातः होने में समय है तो उस पुतले को सीने से लगाकर लेंट जायें। पति, पुत्र, पुत्री जैसे हों तो लेकर लेटें वर्ना अन्य के लिए क्रिया की हो तो वहीं से विसर्जित कर दें। साथ-साथ कुछ देर लेटें और उस व्यक्ति का ध्यान करते रहे। बाद में विसर्जित कर दें।

दूसरे दिन यही क्रिया करें। तीसरे दिन यही क्रिया करें। चौथे दिन से 11 माला जपते रहें। यदि एक माह में उन दोनों में विद्वेषण होने का पता न चलें तो फिर उकृत क्रिया दोहरा दें। वैसे एक माह में विद्वेषण हो जाएगा। यह मेरा बार बार का किया सफल प्रयोग है।

मंत्र

ॐ चिट चिट काली महाकाली कामरूप कामाख्या वाली अमुकस्य अमुकी विद्वेषणं कुरु कुरु स्वाहा।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै अमुक अमुकी विद्वेषणं कुरु कुरु स्वाहा।

शत्रुतावश, अथवा स्वार्थवश अथवा धनार्जन की लालसावश यह प्रयोजन न करें वर्ना सफलता भी नहीं मिलेगी और आपके ऊपर इसका बुरा प्रभाव भी पड़ेगा।

उच्चाटन के लिए

पुतले का निर्माण उसी तरह करे, रंग लाल हो और निम्न मंत्र पढ़ते हुए बबूल के काटें से पुतले के सर पर छेद करते रहें या कांटा गड़ाते निकालते रहें। यदि बबूल का कांटा न मिले तो सुई से भी यह क्रिया कर सकते हैं। तीन दिन के बाद उच्चाटन मंत्र ही जपें। 11 दिन बाद पुनः पुतला बनाकर तीन दिन तक यह प्रयोग करें। फिर 11 दिनों तक मंत्र जाप करें। इस प्रकार उक्त क्रिया को तीन या 5 बार दोहराना होगा। 

मंत्र

ॐ चिट चिट काली महाकाली कामरुप कामाख्या वाली अमुकस्य मानसिक उच्चाटन कुरु करु स्वाहा ।
ऐं ह्री क्लीं चामुण्डायै विच्चे अमुकस्य मानसिक उच्चाटन कुरु कुरु स्वाहा।


मारण के लिए
काले रंग के पुतले का निर्माण करें। जिसका मारण करना हो उसका नाम मस्तक पर लिखे मंत्र सीने में लिखें। उपरोक्त विधि से ही पूजा आदि कर मांस और मदिरा का प्रयोग भी करें, कुछ मदिरा बचाकर अंत के लिए रखे रहें। शाही के कांटे मिल जायें तो उन्हें अच्छी मात्रा में ले आयें यदि न मिलें तो बबूल के कांटे ले आएं और खैर की लकड़ी चार-पांच किलो ले आएं। एक बोतल में सरसों का तेल रखे धतूरे के बीद १०० ग्राम रख लें। काला कपड़ा पुतले के कफन के लिए रखे। मांस का प्रयोग न करना चाहें तो काले उर्द की दाल और दही मिलाकर रखे पुतले की पूजा करके उसके मुख में मांस का टुकड़ा वा दाल और दही का मिश्रण तीन बार रखें और हर बार बोतल से मदिरा भी पिलाते रहें। इसके बाद शत्रु जिसका मारण करना है उसका ध्यान पुतले में बनाएं रख कर मंत्र जाप करें। मंत्र जाप करते हुए शाही के कांटों को उसके अंग प्रत्यंग में गाड़ते जायें। यह क्रिया नीचे से, पैर की उंगलियों से प्रारंभ करें और मस्तक तक ले जाएं। जब आधे मंत्र जप चुकें तो खैर की लकड़ियों की एक चिता बनाए काले कपड़े के कफन में पुतले को लपेटकर सरसों के तेल में डुबोकर शववत चिता पर रख दें। ध्यान रहे कि पुतले का पैर दक्षिण दिशा की ओर हो। मन में यह समझते रहें, कल्पना करते रहें, यह भावना करें की यह शव आपके शत्रु का है और आपका शत्रु मर गया है। यह उसकी चिता है और आप अपने शत्रु का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। मन में मंत्र पढ़ते हुए एक छोटी सी मशाल बनाएं। उसे शराब में डुबोकर जलाएं फिर चिता और चिता पर रक्खे शव के चारों ओर अपने आसन पर (रक्षाकवच आसन) बैठे बैठे ही उस मशाल को चार बार दाएं से बाएं और दो बार बाएं से दाएं घुमाएं। यदि मशाल बुझने लगे तो शराब डाल सकते हैं, परंतु उसे जलना शराब से ही चाहिए। फिर चिता में मशाल नीचे की ओर शव दाह की क्रिया समान खोंस दें। चिता भली प्रकार जल सकें इसलिए आप बबूल, बैर जैसे कांटे दार पेड़ों के पर्ने सुखी लकड़ियां या घास फूस लगा सकते हैं। जब चिता आग पकड़ ले तो मंत्र जपते हुए शराब डालें फिर भी थोड़ी सी शराब बचाएं रखें। उसका प्रयोग अंत में चिता शीतल करने में लगेगा। मांस के टुकड़े और अन्य सामग्री जो पुतले के पूजा पाठ या क्रिया में प्रयोग की गयी है उन्हें भी चिता में डाले चिता जलती रहे और साधक मंत्र जपता रहे। न चिता बुझने पाएं न मंत्र जपना बंद होने पाये और न साधक अपनी रक्षा चौकी से उठकर कहीं जाये। साधक को उस रक्षा चौकी के बाहर हाथ पांव भी नहीं निकालना चाहिए।

साधक यह सावधानी रखे कि रक्षा चौकी से बाहर केवल हाथ निकालकर चिता की क्रिया करले क्योंकि चिता उसे रक्षा चौकी की सीमा से बाहर किंतु अति पास रखना है इस मारण क्रिया में प्रारंभ से ही सावधानी रखनी चाहिए वर्ना साधक के जीवन को खतरा हो सकता है। चिता पर पुतला रखा गया तो साधक के लिए खतरा प्रारंभ हो गया। इसलिए पूर्ण सावधानी हर पल की रखना अनिवार्य है

मारण मंत्र

क्रीं क्रीं क्रीं काली महाश्मशान निवासनी महाकाली खून मास भक्षण करनेवाली 
कराली मम् शत्रु अमुकस्य रक्त पन कर मास भक्षण कर मारय काटयं नाशय फट स्वाहा । 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै मम शत्रु अमुकस्य मरणं नाशमं कुरु कुरु फट स्वाहा ॐ ।।

10 हजार मंत्रों का जाप प्रतिदिन पूरा करें और उक्त विधि से तीन से पांच दिनों तक प्रयोग करें। जब पुतले का शव जल जाए या आधा अधूरा बच भी जाये तो उसे तथा वहां की सारी सामग्री को बटोर कर काले कपड़े में बांधकर बिना बोले किसी तालाब या नदी की ओर जाए और वहां उसे प्रवाहित कर दें। फिर स्वयं वहीं स्नान कर लें और गीले वस्त्रों में ही घर लौटे।

शाबर तंत्रम् में किया जानेवाला ये छोटा सा प्रयोग मैने पाठकों की जानकारी के लिए दिया है। इस तरह के हजारों छोटे शाबर तंत्र है जिसका प्रयोग शाबर तांत्रिक ही नहीं वरन सभी तांत्रिक करते हैं। कभी फिर मूठ चलाने, मूठ मारने और उसे मार्ग में ही उतारने या वापस करने आदि की भयंकर क्रियाएं ज्ञानवर्द्धन के लिए दूंगा।

पाठकों से विशेष आग्रह के साथ निवेदन है कि वे उच्चाटन मारण जैसी क्रियाएं न करें यदि बहुत आवश्यक हो तो गुरू के निर्देशन में करें। अन्यथा ये क्रियाएं उन्हीं को घातक हो सकती हैं।

पाठकों को अब आभास हो गया होगा कि शाबर मंत्रों से प्रबल एवं अचूक होते हैं शाबर तंत्र । बहुत विशाल एवं अक्षय भंडार है शाबर तंत्रम का । 

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