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Showing posts from September, 2022

कर्मफल सभी को भुगतना पड़ता है, इंसान क्या और भगवान क्या? चाहे वह आपके कारण से जना है या किसी के श्राप से।

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कर्मफल सभी को भुगतना पड़ता है, इंसान क्या और भगवान क्या? चाहे वह आपके कारण से जना है या किसी के श्राप से। 1. गांधारी पूर्व जन्म में राजकुमारी थी उसने अपना सुंदरता को बरकरार रखने के लिए वैध को बुलाया वह दिन शौक है चूहा मांगे और उनका फेस पैक बना कर दिया जिसका फल उसने अपने सौ पुत्रों को अपने पैरों के नीचे रखकर एक बेर तोड़ने में प्राप्त किया। 2. पूर्व जन्म में धृतराष्ट्र अंधे थे लेकिन उन्होंने अपने एक नागरिक के हंस के 100 बच्चों को सुरक्षित रखने का वचन दिया लेकिन स्वाद में सभी को खा गए। इसी कारण इस के सौ पुत्रों का कारण बने। 3. सीता ने एक चिड़िया को बंदी बनाकर रखा जिसके कारण उसे बंदी होना पड़ा। 4. भगवान राम को भुगतना पड़ा था नारद द्वारा दिया गया श्राप जिसके कारण उन्हें वनवास व स्त्री वियोग भी भुगतना पड़ा। 5. भगवान राम ने बाली को छिप कर मारा तो अगले जन्म में बाली ने छिपकर कृष्ण को मारा। 5. संपूर्ण महाभारत युद्ध बीत गया भीष्म पितामह पीरों की शैया पर पड़े रहे शाम को वासुदेव कृष्ण से मिलने आते वहकहते हैं कि आज मुझे पहले दिन हो गया आज दूसरा दिन इस तरीके से वह उन्हें गिनते रहे इसी प्

श्री रुद्राष्टक

श्री रुद्राष्टक नमामीशमीशान निर्वाणरूपम् ।  विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम् ।।  निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहम् ।  चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ।।  निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयम् ।  गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।।  करालं महाकाल कालं कृपालं ।  गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ।।  तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरम् ।  मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।।  स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा।  लसद्भालबालेंदु कण्ठे भुजङ्गा ।।  चलत्कुंण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालम् ।  प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।।  मृगाधीशचर्म्माम्बरं मुण्डमालम् ।  प्रियं शंकर सर्वनाथं भजामि ।।  प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशम् ।  अखण्डं अजंभानुकोटिप्रकाशम् ।।  त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिम् ।  भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।  कलातीत कल्याण कल्पांतकारी ।  सदा सज्जनानंददाता पुरारी ।।  चिदानंद संदोह मोहापहारी ।  प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।  न यावद् उमानाथ पादारविंदम् ।  भजंतीह लोके परे वा नराणाम् ।।  न तावत्सुखं शांति संतापनाशम् ।  प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ।।  न जानामि योगं जपं नैव पूजाम् । नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यम् ।।  जरा जन्मदुःखौघ तातप्य

देव ऋषि तुम्बरू

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देवताओं के संगीतकार व गायक तुम्बुरु हिन्दू पौराणिक कथाओं में तुम्बुरु गायकों में सर्वश्रेष्ठ और गंधर्वों के महान संगीतकार हैं। उन्होंने दिव्य देवताओं के दरबार के लिए संगीत और गीतों की रचना की थी। पुराणों में तुम्बरू या तुम्बुरु को ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी प्रभा के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है।   तुम्बरू को अक्सर घोड़े के मुंह वाले ऋषि के रूप में दर्शाया गया। वे वीणा धारण करते और गाते हैं। अपनी तपस्या से शिव को प्रसन्न करने के बाद, तुम्बुरु ने शिव से कहा कि वे उन्हें एक घोड़ा जैसा चेहरा और अमरता प्रदान करें। शिव ने उसे आशीर्वाद दिया और वह वरदान दिया जो उसने मांगा था।     तिरुमला में तुम्बुरु तीर्थम एक बार ऋषि तुम्बुरु ने अपनी आलसी पत्नी को एक ताड़ बनने और इस झील में रहने के लिए शाप दिया। कुछ समय बाद, ऋषि अगस्त्य इस तीर्थ में पहुंचे और अपने शिष्यों को इस तीर्थ के गुणों का वर्णन किया। उनकी बातें सुनकर उसने फिर से अपने गंधर्व स्वरूप को प्राप्त कर लिया।     निष्कर्ष: तुम्बुरु जो एक दिव्य ऋषि और एक महान संगीतकार हैं और वे भगवान शिव एवं भगवान विष्णु के बड़े भक्त हैं। वह हमार