पंचपुष्प प्रथम दिन कथा

प्रथम दिन कथा

आप यदि भगवान भोलेनाथ की सेवा कर रहे हैं या शिवलिंग पर बेलपत्र या कमल पुष्प चढ़ा रहे हैं तो उनका बखान क्या करें और यह भी कहा जाता है कि 



तुलसी दल बेलपत्र गंगाजल और कमल पुष्प कभी बासी ही नहीं होता

गंगाजल सालों साल रखने के बाद भी बासी नहीं होता
कमलपुष्प 5 दिन तक रखे रहने पर भी बासी नहीं होता
तुलसीदास और बेलपत्र को धो-धो कर बार-बार पढ़ा जा सकता है यह कभी बासी नहीं होती।
यदि आप कितने सामर्थ्य नहीं है और आप भगवान भोलेनाथ का चढ़ा हुआ एक बेल पत्र धोकर पुणे उनको समर्पित कर देते हैं तो वह एक लाख बेल पत्रों के बराबर पुणे प्रदान करता है।
इसी प्रकार जाप मंत्र गुरु मंत्र भजन कीर्तन आदि कभी बासी नहीं होता जब जब करना शुरू करें तभी बह ताजा हो जाता है।

श्री पंच भूत कथा के अंतर्गत गुरु ज प्रदीप मिश्रा जी भगवान भोलेनाथ पर चढ़ने वाले पांच पुष्पों की कथा बताने जा रहे हैं।

पुष्पा के बारे में बताते हुए प्रदीप मिश्रा इसे कहते हैं कि वायु पुराण के अंतर्गत ऐसा वर्णन मिलता है कि आपको पोस्ट के मालिक से पूछ कर ही वृक्षों और पौधों से तोड़ना चाहिए।
शिवपुराण कहती है क यदि हमने यही पूछ तो बिना पूछे थोड़ा और भगवान भोलेनाथ पर चढ़ा दिया तो यह पुणे का कार्य नहीं यहां से पाप कर्म की शुरुआत हो जाती है अतः माली से बिना पूछे किसी भी फोन को तोड़ कर भगवान भोलेनाथ को अर्पित ना करें।
यदि आप ऐसा नहीं करना चाहते हो तो आप उसके स्थान पर एक चावल का दाना ही चढ़ा दें अपना चढ़ाएं किसी और का नहीं।
यदि पूछने वाले कह दे कि फूलों का उपयोग कर सकते हैं तो यह चढ़ाए गए फूल आपको आनंद प्रदान करने वाले होंगे और हमारे कार्य अपने आप सिद्ध होते चले जाएंगे।
इतिहास में चोरी करके बिना पूछे फूल चढ़ाया आपने लक्चर श्रंगार कर दिया लेकिन इसमें आपको आनंद की प्राप्ति नहीं होगी आपको सफलता प्राप्त नहीं होगी।

इस कथा से हमें पता चलता है कि फूल चढ़ाने से पहले हमें फूल चढ़ाने के नियम आने चाहिए फूल कहां से लिया गया है
कौन से पुष्प चढ़ाने जा रहे हैं कहां से लिए हैं और क्यों चढ़ाने जा रहे हैं यह तरीका आना चाहिए। भले ही आपके पास 55 नहीं है और आपने मंदिर का ही पुष्प चलाया तो आपको उसका भी तरीका आना चाहिए।
★ सबसे पहले नियम के पुष्प आपके अपने पौधे या बगीचे का होना चाहिए दूसरे के पौधे या बगीचे से बिना पूछे तोड़े गए पुष्प का फल प्राप्त नहीं होता यदि दूसरा व्यक्ति आज्ञा दे दे तो उसका फल में प्राप्त होता है।
★ दूसरा नियम यदि हम किसी फूल को तोड़ने जा रहे हैं तो स्नान किए हुए हैं तो हमें फूल नहीं तोड़ना चाहिए हम फूल तभी तोड़े जब हमने स्नान नहीं किया है। अतः पुष्प बिना नहाए तोड़ा जाता है। लेकिन यहां एक संघ का जन्म लेती है कि यदि हमारा शरीर शुद्ध नहीं है और हमने फूल तोड़ लिया तो क्या वह फूल शुद्ध रह गया। तो वायु पुराण कहती है कि जब हम लाए हुए पुष्पा को किसी भी देव को अर्पित करते हैं तो हमारे न जाने कितने दोष तुरंत समाप्त हो जाते हैं।
★ तीसरा नियम पोस्ट को तोड़ने के बाद धोया नहीं जाता उसे ज्यों का त्यों रख लिया जाता है। जब हम स्नानादि करने के बाद पूजन करते हैं तो उस पुष्प को ज्यों का त्यों पूजा में प्रयोग कर लिया जाता है। इसीलिए ध्यान रखना चाहिए कि पानी में या जल में पुष्प डालकर अर्पित करने से हमें लाभ नहीं बल्कि दोष लगता है।
★ नियम नंबर 4 मंदिर में यदि भगवान शिव पर चढ़े हुए पोस्ट या निर्मल ले मंदिर में बिखरा पड़ा है तो पहले उसी समय दें उसके ऊपर से चढ़कर ने जाएं। और ना ही उसे लांघा जाए। यदि मंदिर में या रास्ते में आपको निर्मल ले दिखाई दे जाए तो उसे उठाकर एक साइड रख दे अन्यथा इसका दोष आपको भी लगेगा।
★ नियम नंबर 5  आपने देखा होगा की पुजारी या कथावाचक या कुछ लोग पुष्पों को उठाकर उन लोगों को दे देते हैं जो इसके पात्र नहीं है और इसका उपयोग नहीं जानते और विशेष इधर उधर कहीं भी गिरा देते हैं और लोग अनजाने में ही उस पर पैर रखकर दोष के भागी बन जाते हैं।
★ नियम नंबर 6 भगवान शिव को चढ़ने वाले पांच पुष्पों की को बिना डंडी थोड़ी ही चढ़ाया जाता है अर्थात इनकी डंडी तोड़ी नहीं जाती।

यदि आप पान खाते हैं गुटखा खाते हैं तो सुपारी खाते हैं तो मंदिर मार्ग पर या कथा मार्ग पर या पवित्र नदी आदि की ओर जा रहे मार्गों पर थूका ना जाए। इन मार्गों पर पूजा आदि के लिए जाने वाले लोग उसे लांग कर जाएं। यह जितने लोग उसे लांग कर जाएंगे उतना ही दोष आपको लगेगा। और आपका जीवन नष्ट होगा। जितने जितने लोग इसे लांग कर जाएंगे उतना ही रोज आपके शरीर में आएगा। 
आपने देखा होगा या सुना होगा कि यह व्यक्तित्व ऐसा नहीं था बहुत अच्छा था कभी इसने गुटका पान बीड़ी आदि नहीं खाए लेकिन अनजाने में ही जब कफ बड़ा तो उसने अनजाने में ही पवित्र नदियों की ओर जाने वाली पवित्र मंदिरों की ओर जाने वाले पवित्र कथा पांडवों की ओर जाने वाली पवित्र संतो के कुटिया ओं की ओर जाने वाले रास्तों पर थूक दिया होगा जितने लोगों ने उसे पार किया उन लोगों का दोष रोग बंद कर उस पर लग गया।
पहले के समय में सड़कों के किनारों पर कुछ गड्ढे बनाए जाते थे जो इसी काम में उपयोग लाए जाते थे लेकिन आज तो पूरी भूमि को ही लोगों ने थूक दान बनाकर रखा हुआ है। जहां उसकी मर्जी होती है थूक देता है। यह श्रेष्ठता नहीं है। यह भूमि माता वसुंधरा धारा जो हमें आने देती है जिसके गोद में हम खेलते हैं हमारा जीवन व्यतीत होता है हम उसी को गंदा कर के रखे हुए हैं क्या यह श्रेष्ठ है कभी मां के आंचल को इसी तरीके से गंदा करके देखना तो मैं इसका फल मिलेगा। हमें उसे प्रणाम करना चाहिए नमन करना चाहिए और हम उसके साथ क्या कर रहे हैं।

बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने का एक उपाय बताते हैं मंदिर में जाइए शिव मंदिर में जाइए और वहां की निरमा ले को एकत्रित कीजिए और उसे एक गड्ढे में डालकर उसका कंपोस्ट खाद बनाई है और जो बंजर भूमि है उसमें थोड़े थोड़े स्थान पर 6 / 6 इंच के गड्ढे खोद खोद कर उस निरमालय को डाल दीजिए। विश्वास नहीं करेंगे कि भोलेनाथ की कृपा से वह बंजर भूमि भी उपजाऊ भूमि में परिवर्तित हो जाएगी उपाय करने में क्या जाता है करके देखिएगा।
लेकिन जब आप मंदिर से निर्मल एकत्रित करें तो भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना करें कि हे भगवान भोलेनाथ में यह आपका निर्णय नहीं ले जा रहा हूं आपको ले जा रहा हूं आप ही मुझ पर कृपा कीजिए और मेरी बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि में बदलने में सहायता कीजिए और थोड़ा-थोड़ा करके उस
 वहां पर डाल दीजिए। होता क्या है निरमा लेकर एकत्रित करके नदिया दी में डाल दिया जाता है जिससे वह दूषित हो जाती है प्रदूषित हो जाती है एक तो इस निर्माण ले क खेत में डालने से नदी प्रदूषित होने से बच जाएंगी और दूसरा जो बंजर भूमि है वह भी उपजाऊ में बदल जाएगी।

भगवान पर चढ़ा होने वाले भी दो कार्य कर जाता है एक रक्षा के लिए तथा दूसरा अपने कार्य की सफलता के लिए
किसी बीमारी में यदि हम बेलपत्र या निर्मला लेकर आते हैं तो यह औषधि का कार्य करते अर्थात औषधि बन जाती है अर्थात हमारी रक्षा का कार्य करती है।

यदि किसी कुएं में बावड़ी में या किसी बोर में पानी कम होता जा रहा है तो उसके चारों तरफ बेलपत्र के पौधे लगा दो इससे जब भोले बाबा घूमते हुए यहां आएंगे तो अपने साथ गंगा को लेकर आएंगे और फिर पानी की कमी नहीं होगी । यदि आपको लगता है कि बरसात में और सर्दी में इसमें इनमें पानी रहता है और गर्मियों में सूख जाता है तो इन के चारों तरफ थोड़ी थोड़ी दूरी पर बेलपत्र के पौधे लगाकर देखिए क्या जाता है प्रिया करने में। शिव कथा कहती है कि जान बेलपत्र का पौधा होता है वहां मेरा भोला पार्वती से मिलने आता है अजब भोला आता है तो वह अकेला नहीं आता गंगा को साथ लेकर आता है।
विदेश्वर संहिता कहती है की शिव की पूजा करने वाला बच्चा युवा स्त्री पुरुष वृद्ध आदि जिस विभाग से भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं मेरा भोला उनकी भाई चा अवश्य पूरा करता है।

भगवान भोलेनाथ को चढ़ाने वाली वस्तु आपकी अपनी होनी चाहिए। पहले लोग अपने घर के परिंदे अर्थात घड़ी में से जल भरकर लेकर जाते थे क्योंकि उन्हें पता था की वास्तु दोष पितृदोष और कालसर्प दोष घर में होता है और घर से ले जाए गए जल को भगवान भोलेनाथ को अर्पित करने से वह समाप्त हो जाता है। आते सारे दोष जल समर्पण के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।

पुष्पदंत की कथा
पुष्पदंत इंद्रलोक में गंधर्व था जो वहां गायन करता था। एक बार उसके मन में पृथ्वी पर भ्रमण करने की आई और वह पृथ्वी पर भ्रमण करने जा पहुंचा। पुष्पदंत एक गंधर्व है और उसे एक वर प्राप्त है कि वह किसी को दिखाई नहीं देगा। उसके द्वारा किया गया कार्य भी दिखाई नहीं देगा और उसकी आवाज भी सुनाई नहीं देगी। लेकिन पुष्पदंत शिव भक्त था उसे शिव आराधना पूजन और सेवा में लगना लगे रहना बहुत अच्छा लगता था। जब पुष्पदंत पृथ्वी पर घूम रहा था तो उसे भगवान पूजन की सूची और पार्थिव शिवलिंग शिवलिंग बनाकर वह उनका पूजन करने लगा। वह पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करता जहां से भी फूल पत्ती मिल जाते उन्हें लाकर भगवान की पूजा कर लेता। एक बार उसके मन में आया कि चलो आज और ज्यादा भ्रमण किया जाए तो भ्रमण करते करते वह राजा चित्र व्रत के उद्यान में जा पहुंचा। 
कभी-कभी हमारे मन में आता है कि रास्ते में हमें सुंदर फूल दिखाई दिया और हमने उसे तोड़ दिया और भगवान की पूजा करती हमें लगता है कि भगवान हमसे प्रसन्न होंगे लेकिन भगवान सोचते होंगे कि अरे वह चोर दूसरे के घर को चुरा कर के सोचता है कि मैं प्रसन्न होआऊंगा। ना यह ठीक नहीं है यदि आप पूछ ले और तब लेकर जाएं तो ठीक है।
पुष्पदंत जब राजा चित्र व्रत के उद्यान में पहुंचे तो वहां के पुष्पों को देखकर उनका मन डोल गया और उन्होंने वहां से फूल पत्तियां छोड़कर आए और भगवान भोलेनाथ को समर्पित करने लगे। 1 दिन राजा सिद्धू रत को शिवपजन
 का मन हुआ तो उन्होंने अपने सहायकों को पुष्प लाने के लिए भेजा जब सहायक उद्यान में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां के फूल पत्तियां आदि टूट चुकी है और वह उद्यान खाली हो चुका है। अब यह क्रम चल निकला कि राजा पूजन को बैठते और उन्हें फूल नहीं मिलते। कई दिन बीतने पर राजा को क्रोध आ गया की पोस्ट पर हीन पूजा कैसे लगेगी उसने सहायकों से पूछा कि कौन पुष्प ले जा रहा है सहायकों ने कहा हमें नहीं मालूम हमें कोई दिखाई नहीं देता। हमने पाने के सभी प्रयास करके देख लिए। 
राजा ने अपने विशेष अनु चरणों को उद्यान में लगा दिया लेकिन पुष्पदंत को तो वरदान प्राप्त था कि न तो कोई देखेगा नहीं सुनेगा और न ही उसके चलने का पदचाप किसी को महसूस होगा। लेकिन वह चोर किसी को दिखाई नहीं दे रहा और उनकी आंखों के सामने ही पोस्ट गायब हो रहे हैं। बहुत बड़े उद्यान के होने के बावजूद शिव पूजा बिना पोस्ट के होने से चित्ररथ ने सोचा कि आज भगवान शिव पर चढ़े बेलपत्र रुपी निरमालय को उद्यान के चारों तरफ बिछा दिया जाए और ऐसा ही किया गया। 
जब पुष्पदंत आया तो उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और वह उद्यान में अंदर घुस गया जब उसका पैर भगवान की निर्मल ले पर पड़ा तो भगवान भोलेनाथ को गुस्सा आ गया और वह बोले पुष्पदंत एक आदमी से व्यक्ति को भी इसकी सजा दिए हुए मैं नहीं छोड़ता तुम तो मेरी भक्तों तुम तो जानते हो कि मुझ पर जब चले हुए चढ़े हुए जल यह फूल पत्र या बेलपत्र की कितनी महत्ता है और तुमने उसी पर पैर रख दिया। जा मैं तेरी छुपने और किसी को सुनाई नहीं देनी के आशीर्वाद को समाप्त करता हूं ऐसा कहते ही पुष्पदंत दिखाई देने लगा और चित्र रथ के सहायकों ने उसे पकड़ लिया। और उसे दरबार में पेश किया गया जितना तू न पूछा कि तुम कौन हो दोस्त ने बताया कि मैं
 देवराज इंद्र के दरबार में रहने वाला एक बंदर हूं गंधर्व हूं और मुझे वरदान था कि कोई नहीं तो मुझे देख पाएगा नहीं सुन पाएगा और नहीं मेरे पद जाटों की महसूस कर पाएगा। मैं पृथ्वी पर घूम गया तो आप के उद्यान के पुष्प मुझे बहुत अच्छे लगे और मैंने उनका उपयोग भगवान शिव की पूजा में किया तभी भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और बोले अरे पुष्पदंत तू यह क्या कर रहा था
 मेरी पूजा कर रहा था और चोरी के पुष्पों से कर रहा था मुझे ऐसा पूजन नहीं चाहिए जिसमें चोरी की वस्तु शामिल हो।

जब भी आप भगवान भोलेनाथ से मांगे तो अपनी झोली पसार कर गुस्से बोलें हे भोलेनाथ मुझे इतना देना इतना देना इतना देना कि मुझे किसी के सामने हाथ ना पसारना पड़े बल्की लोगों को मैं सेवा कर सकूं। और मेरे सारे काम आपकी कृपा से होते चले जाए।

शिव पर चढ़े हुए जल का जो आचमन कर लेता है उसके शरीर में कैसे भी रो क्यों ना हो वह रोग समाप्ति की ओर जाना प्रारंभ हो जाता है।
और जो व्यक्ति शिव पर चढ़े हुए पदार्थ का मात्र दर्शन कर लेता है तो उसके जीवन में आने वाली सभी परेशानियां अपने आप दूर होने लगती हैं।

हरसिंगार या  पारिजात का पुष्प या रात की रानी
हारशृंगार का पुष्प ऊपर से सफेद होता है तथा उसकी जो ठंडी होती है वह केसरिया या नारंगी रंग की होती है और बहुत खुशबूदार होता है। यह फूल रात्रि में खेलता है इसलिए इसे रात की रानी भी कहा जाता है। देसी कहीं-कहीं सीडली का पुष्पे भी कहते हैं ।
यह पुष्प ऐसा है की जिस का वंश वृक्ष नहीं बढ़ रहा हो जिसके संतान नहीं हो रही हो तो भगवान भोलेनाथ की इस पुष्प से पूजा की जाती है। इस पुष्प के चढ़ाने का एक तरीका है।
कार्य सिद्धि वंश वृद्धि वैभव राधे वृद्धि या अपने मन की सुख समृद्धि और संतान प्राप्ति के लिए हरसिंगार का पौधा से आराधना की जाती है। इस आराधना में हरसिंगार का पौधा का पुष्प अशोक सुंदरी वाले स्थान पर अर्पित करते हैं। इस समय पुष्प की डंडी हम भगवान की तरफ अर्थात लिंग की तरफ तथा मुख जल के गिरने की तरफ होता है अब इसी पुष्प उठाकर पुणे माता के हास्त कमल पर अर्पित करते हैं परंतु इस स्थिति में फूल भगवान भोलेनाथ के लिंग की तरफ तथा उसकी डंडी हमारी तरफ होती है। अब ऐसी पोस्ट को तीसरी बार माता के हंस कमल से उठाते हैं और भगवान भोलेनाथ के ऊपर अर्पित करते हैं उस समय फूल भगवान भोलेनाथ के ऊपर उसकी डंडी तथा फूल का मुख हमारी तरफ होती है।

अब एक और बात ध्यान ध्यान देने वाली है। कि हमें आराधना से पूर्व पारिजात की पुष्प की केसरिया डंडी से केसर तैयार किया जाता है और उसी का त्रिपुंड लगाकर भगवान से अपने मन की बात कही जाती है यह केसर कैसे तैयार करना है यह भी चलो हम बता देते हैं इसके लिए पारिजात के पोस्ट एकत्रित करें उनकी डंडी को तोड़कर एक कटोरी में रख कर घर में ही सुखा लें और उसे गैस कर उसका पाउडर बना लें और इसमें गंगाजल मिलाकर इसका चंदन तैयार कर ले और सिद्धि के लिए वंश वृद्धि के लिए कार्य सिद्धि के लिए पूजा के समय जब इसका उपयोग करेंगे तो यह त्रिपुंड लगाने के काम आएगा और पारिजात का केसर कहलाएगा।

जवान आराधना कर रहे होंगे तो पुष्प चढ़ाने के बाद जवाब कैसे लगाएंगे तो यह केसर की तरह खुलेगा और उसे की तरह सौगंध उत्पन्न करेगा और वही सुगंध हमारे जीवन में भी आएगी और हमारे शरीर या हमारी कामना पारिजात हो जाएगी।

सोमवार की अष्टमी पड़ने पर यदि हम दिवादी देव महादेव की पारिजात आराधना करेंगे तो हमारा फल कई गुना प्राप्त होगा। यदि आपने हर महीने आने वाली शिवरात्रि को पारिजात के एक बुजुर्ग से आराधना करनी शुरू कर दी तो आप पीछे नहीं रहेंगे भगवान भोलेनाथ आपका हाथ पकड़ ही लेगा।

प्रतिदिन के जलाभिषेक के बाद भी आप पारिजात के चंदन से भगवान शिव की आराधना कर सकते हैं।

पारिजात के पुष्प से 3 शिवलिंग की आराधना की जाती है और बहुत अधिक फल देने वाली होती है
 पहला नर्मदे हर महादेव शिवलिंग पर हड़ताल जो से नहीं नर्मदा से प्राप्त हुआ है उसकी आराधना हरसिंगार से की जाए तो कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है।
एकांत में स्थापित महादेव को एकांत ईश्वर महादेव कहते हैं इन पर भी पारिजात का पुष्प से आराधना की जा सकती है और यह भी कई गुना फल देने वाली होती है। जिद्दी कोर्ट केस चल रहा है तो एकांत ईश्वर महादेव के पास पारिजात के पेड़ का स्मरण करना या फिर इसे चढ़ाकर आराधना कर देने से ही कोर्ट केस में सफलता प्राप्त होती है।
तीसरा किस जलस्रोत जैसे कुआ बावड़ी तालाब नदी आदि के तट पर बना शिवालय प्राचीन काल में या उन मंदिरों में आज भी आप महसूस कर सकते होंगे कि मंदिरों के को तालाबों आदि के पास भगवान भोलेनाथ मंदिर स्थापित किया गया है इसका कारण क्या है। इसका कारण यह है कि जल स्रोतों में रहने वाली गंगा मैया शिवलिंग गोस्वामी सिद्ध कर देती हैं इन्हें सिद्ध करने की जरूरत नहीं पड़ती यही कारण है। या बिहार से अगार का पुष्प अर्पित किया जाता है। यदि पोस्ट ना मिले तो आप हार सिंगार के केसर चंदन का प्रयोग भी कर सकते हैं।

गणगौर का त्योहार हमें याद दिलाता है कि भगवान भोलेनाथ ने 16 दिन तक श्रंगार किया दूसरी तरफ माता गोरा ने भी 16 दिन तक श्रंगार किया तो भगवान भोलेनाथ के 16 दिन के श्रंगार है वह 16 संस्कार कहना है तथा माता पार्वती के जो शोले श्रंगार हैं वे शोले श्रंगार कहलाए। 


मैंने तेरे ही भरोसे बाबा तेरे ही भरोसे 
हवा विच उड़ती जावांगी
बाबा दो हत्थे छोड़ी तो ना मैं कट्टी जावांगी
भोले मैं तेरी पतंग
भोले मैं तेरी पतंग बाबा मैं तेरी पतंग
हवा विच उड़ती जावांगी
बाबा दो हत्थे छोड़ी तो ना मैं कट्टी जावांगी

 देवराज नाम के ब्राह्मण ने किसी पूर्व पुण्य के कारण ब्राह्मण घर में जन्म दे लिया। जब कोई बहुत बड़ा पूर्ण है सामने आता है तभी किसी अच्छे कुल में जन्म होता है यह अच्चा कुल कया है। वह कल जिसमें 7 पीढ़ियों में से किसी एक में भी भक्त बच्चा पैदा हो जाए कुल को अच्छा कुल कहा जाता है। धन दौलत और सुख सुविधा वाले परिवार अच्छा कोई नहीं कहा जाता क्योंकि यह तो कोई भी गलत कार्य से कमा सकता है
जस घर का कोई भी व्यक्ति थोड़े समय के लिए घर के लिए 1 दिन के लिए जब भी समय मिले शिव की भक्ति में लगा हुआ है तुम सह परिवार अच्छा परिवार या कुल माना जाता है।
देवराज ब्राह्मण कुल में जन्म हुआ है लेकिन उसमें ब्राह्मणों के गुण नहीं है वह बह्मणों के गुणों से वंचित है। वह रे वेदादी के पठन-पाठन से तो दूर लेकिन पूजा पाठ से भी दूर है वह कभी मंदिर नहीं जाता।
एक दिन जब से चोरी करके आ रहा था तो एक मंदिर में उस दिन को लेकर बैठ गया उसी मंदिर में एक ब्राह्मण शिव कथा का वाचन कर रहे थे। आज देशराज के शरीर में ताप था अर्थात उसे बुखार है ब्राह्मण देव कथा के बीच बीच में हर हर महादेव बोलते लोग भी उसी लय में उनका साहित्य से परेशान होकर व क्रोधित होकर वह मंदिर से उठा और एक बेल के पेड़ के नीचे जा बेठा जा बुखार के कारण ताप के कारण उसके प्राण छूट गए। और यमदूत उसे लेने आ गए। तो शिवजी के गण भी आकर खड़े हो गए।
देवराज ने पूछा आप मुझे कहां लेकर जा रहे हैं तो फिर भी गणों ने कहा हम तुम्हें शिव के नाम लेकर जा रहे हैं देवराज को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने पूछा मैंने ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी आज तक कुछ ऐसा काम नहीं किया। महादेव के गाणो ने कहा की यह तुम्हारी कर्मों का फल नहीं है तुम्हारी माता जो एक लोटा जल भगवान भोलेनाथ पर चलाती रही हैं यह उसका फल है। लोगों को कहते सुना होगा की उस पुराण की कथा सुनने से सात पीढ़ियां पर जाती हैं लेकिन हम कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ की कथा सुनने से 7 नहीं 71 पीढ़ियां पर जाती है।




भंडारा
लोगों का विचार होता है कि हम भी बहुत बहुत बड़े भंडारे करें वे कहते हैं कि हमारी हैसियत नहीं है इसलिए हम भंडारे नहीं कर पाते प्रदीप मिश्रा जिसक प्रदीप मिश्रा जी इसका हाल बताते हैं कि जरूरी है कि भंडारा छोटा या बड़ा किया जाए बनारस छोटा किया जा सकता है वह कैसे
 चीटियों को आटा वह शक्कर डालना भंडारे से कम नहीं है पक्षियों को दाना डालना कुत्ते को रोटी खिलाना गाय को रोटी खिलाना किसी भंडारे से कम नहीं है।

स्वयं खा लेना स्वीकृति छीन कर खा लेना विकृति तथा बैठकर खाना मेरी देश की संस्कृति है।


शीश भोले के गंगा बिराजे ४ हां गंगा बिराजे गंगा बैराज
ओ शीश भोले के गंगा बिराजे 
अरे गंगा बहा दो एक बार दोबारा फिर आऊंगी

ओ मेरे भोले नैना तो खोलो ४
अरे दर्शन करा दो एक बार दोबारा फिर आऊंगी
दोबारा फिर आऊंगी ४










कथा में जो समय मिले उसका सदुपयोग करो घर की बातों में ना लगाकर मन को कथा और भगवान में लगाओ। जिस प्रकार जो पोस्ट में अच्छा लगता है मुझे तोड़ देते हैं जो मैं अच्छा नहीं लगता अच्छा था अर्थात जो गंदी दिखने मे बेकार गंदी कोई नहीं छोड़ तोड़ता।
इंद्र इंद्रलक में रहते हैं ब्रह्मा ब्रह्मलोक में विष्णु बैकुंठ में और भगवान भोलेनाथ इस धरती की पर इसलिए उनको जो सबसे अच्छा लगता है उसे तोड़कर अपने पास रख लेते हैं।

तुम आज जो भी हो वह तुम्हारे शिवाले तक जाने का ही कारण है उसी ने तुम्हें थाम रखा है। ध्यान रखिए यदि आप मंदिर जाते हो तो आप नहीं जाते मेरा भोला आपक बुलाता है तभी आप जाते हो वरना आप की क्या औकात मंदिर तो दूर आप घर से बाहर ही नहीं निकल सकते। आप बेशक कहते रहो मैं मंदिर जाता हूं सेवा करता हूं आराधना करता हूं लेकिन जब तक वह नहीं जाएगा अब इसमें से कुछ भी नहीं कर सकते।

अर्जुन एक प्रबल निर्णय या सबसे बड़ा है आ रही है कि उसने निश्चय कर लिया ठान लिया कि मुझे केवल कृष्ण चाहिए और कुछ नहीं। मुझे कुछ नहीं चाहिए कृष्ण मेरे होने चाहिए, कृष्णा मेरे हो जाए,  कृष्ण मेरे रहे हैं। मुझे कुछ नहीं चाहिए मुझे कृष्ण चाहिए। और कृष्ण अर्जुन के हो गए कृष्ण केवल वही एक निर्णय लिया और बाकी निर्णय भगवान कृष्ण ने लिए।

इसी प्रकार यदि आपने शिव को पाने का विवरण निर्णय ले लिया तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि कृष्ण की तरह भगवान शिव भी बाकी आपके सभी निर्णय भगवान शिव लेंगे आपको लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
मेरे बाबा दया करना मैं तेरे भरोसे हूँ। –२
मैं घर के भरोसे हूं न परिवार के भरोसे हूं –२
मेरे बाबा दया करना मैं तेरे भरोसे हूँ।

जब आपने निर्णय ले लिया कि मुझे शिव मंदिर जाना है शिव की आराधना करनी है सेवा तत्वों को जानना है तो अब आपका निर्णय नहीं चलेगा अब शिव निर्णय करेंगे कि आगे क्या करना है।



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