क्या है एक लोटा जल का महत्व ? राजा सत्यव्रत की संपूर्ण कथा

राजा सत्यव्रत की कथा भाग 1

महाराज मेरी भोलेनाथ की कथा ऐसी ही नहीं वे अपने भक्तों के लिए नंगे पैर दौड़े चले आते हैं ऐसे कथा सत्य भगवान सत्य व्रत की कथा जिसमें भगवान उसके बच्चे की रक्षा की अपने 19 अवतारों में शोध में अवतार भिक्षुवर्य अवतार चलो जानते हैं और सुनते हैं यह कहानी 

राजा सत्यव्रत की कथा भाग्य 1

शिव पुराण में भगवान शिव के अनन्य भक्त राजा सत्यव्रत का वर्णन मिलता है। सत्यव्रत विदर्भ नरेश सत्यव्रत आठों पहर भगवान भोलेनाथ की आराधना में लगा रहता था। आराधना में दिन और रात उसके लिए समान थे। ऐसा कोई पल ऐसी कोई घड़ी या ऐसा कोई दिन नहीं होता था जिसमें सत्यव्रत भगवान भोलेनाथ की आराधना में लीन न रहें हो।

भगवान भोलेनाथ में अगाध भक्ति प्रेम के उपरांत भी वह अपने राज्य की जनता को हमेशा खुश रखने का प्रयास करते। उनके राज्य में जनता बहुत सुखी और प्रसन्न थी। प्रजा को जब भी कोई परेशानी होती तो राजा उसे तुरंत दूर करते और राज्य के कल्याण में अपनी धन-संपदा का उपयोग करते। राजा सत्यव्रत के कार में धन केवल दो ही कल्याण कार्य में लगता या तो धर्म कल्याण में या फिर जन कल्याण में तीसरी जगह धन के लगने का कोई स्थान नहीं था।

उसका ऐसा मानना था कि 
श्वास वशश्वास में राम रटो, वृथा जन्म मत खोय।
न जाने इस श्वास का फिर, आवन होए ना होए ।।

ऐसा विश्वास करके मैं भगवान शिव की आराधना में तल्लीन रहते थे। राजा सत्यव्रत भगवान की आराधना में लगे रहते, भगवान के भजन कीर्तन में लगे रहते, जब राजा सत्यव्रत भगवान शिव की अविरल भक्ति में डूबे हुए थे परंतु राज्य की सुरक्षा में भी पूरा ध्यान देते।

एक राजा सत्यव्रत जो सुबह उठता शिव मंदिर जाता और वहां की साफ सफाई करता है। शिव कथा कहती है कि भक्ति करने वाला कीर्तन करने वाला भगवान की सेवा करने वाला, भगवान शिव पर जल चढ़ाने वाला फूल पथरी चढ़ाने वाला मंदिर में प्रकाश करने वाला दीपदान करने वाला साफ सफाई करने वाला निर्मलता लाने वाला कभी भी पतन को प्राप्त नहीं होता वह हमेशा उत्थान को प्राप्त करता है। 

हुआ भी यही कि इससे विदर्भ राज्य की समृद्धि बढ़ गई उसका धन बढ़ गया वैभव बढ़ गया संपदा बढ़ गई । इस कारण सत्यव्रत और उसके राज्य की ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई कि वह भगवान शिव की आराधना में लगा रहता है और कुछ कर्ता धर्ता नहीं फिर भी उसकी प्रजा बहुत खुश खुश है और प्रजा में उसका बहुत सम्मान है।

इससे उसके आसपास के राजा जलन करने लगे सबने मिलकर योजना बना ली कि उसकी धन, वैभव और सत्ता को छीन कर आपस में बांट लिया जाए और राजा को नष्ट कर दिया जाए।

साथियों हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम दूसरे का धन छीन सकते हैं वैभव छीन सकते हैं सत्ता छीन सकते हैं लेकिन उसकी विद्यवत्ता, भक्ति और पुण्यफल कभी नहीं छीन सकते। आसपास की राजाओं ने मिलकर उस पर आक्रमण कर दिया उसका समस्त धन, वैभव और सत्ता छीन ली और उसको भी मार डाला।

इस वक्त राजा सत्यव्रत की धर्मपत्नी गर्भवती थी अर्थात पेट से थीं। महल के रक्षकों ने आकर बताया की समस्त राजाओं ने मिलकर विदर्भ पर आक्रमण कर दिया है उसने समस्त धन वैभव और सक छीन ली है और महाराज को भी मार डाला है ।

महारानी बोली, "क्या ? महाराज की हत्या कर दी गई । तो मैं ही जी कर क्या करूंगी ? मैं भी मर जाती हूं।"

"महारानी ! आप कैसी बात करती हैं ? आपके गर्भ में विदर्भ राज्य का उत्तराधिकारी है और आप मरने की बात करती हैं। महारानी इसे आपको जन्म देना होगा ताकि विदर्भ को उसका उत्तराधिकारी मिल सके और इन राजाओं को सबक।" अक्षर में समझाया

"तो मैं क्या करूं?", महारानी बोली।

"वे, कहीं आप की भी हत्या ना कर दें इसलिए आप गुप्त रास्ते से निकल जाइए और विदर्भ के भावी युवराज की रक्षा कीजिए।" 

इतना सुनकर महारानी गुप्त रास्ते से महल से बाहर सुरक्षित निकल गई। मैं चलती हूं चलती रही पास में एक नदी पड़ी उसे तैरकर पार किया और जैसे ही दूसरी तरफ पहुंची प्रसव पीड़ा शुरू हो गई और वहीं उन्होंने एक शिशु को जन्म दिया।

महारानी ने शिशु को देखा तू प्रसन्न आई लेकिन तभी उनकी प्यास जाग उठी और वह पानी पीने के लिए नदी के पास पहुंचे और जैसे ही नदी में से पानी लेने के लिए हां डाला वैसे ही घड़ियाल ने उनके हाथ को पकड़ा और नदी में खींच कर ले गया और मार डाला।


भिक्षुवर्य अवतार

भगवान शिव का एक अवतार है भिक्षुवर्य अवतार।

भोले बाबा तेरी नौकरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी 
 तेरे  दरवाजे की चाकरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी 
जबसे तेरा गुलाम हो गया तब से मेरा भी नाम हो गया
जबसे तेरा गुलाम हो गया तब से मेरा भी नाम हो गया
वरना औकात क्या थी मेरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी 
भोले बाबा तेरी नौकरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी 

सत्यव्रत की कथा

दुनिया कुछ भी कहे परंतु भगवान भोलेनाथ का भक्त अपनी दृढ़ता पर हमेशा दृढ़ रहता है और हो भगवान भोलेनाथ पर भरोसा रखता है। सत्य वत की कथा उसी दृढ़ भक्ति और आस्था का एक उदाहरण है।

सत्यव्रत की कथा भाग 2

सत्यव्रत की मृत्यु के उपरांत दूसरे राजाओं ने उसके राज्य पर अधिकार कर लिया तो उसकी गर्भवती पत्नी अपने और बच्चे की रक्षा के लिए राज महल से भाग निकली और राज्य से बहुत दूर पहुंच गई। तभी उन्हें प्रसव पीड़ा हुई और उन्होंने एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया। देव योग देखिए इसी वक्त  उसे बहुत प्यास लगी तो रानी अपने बच्चे को सुरक्षित छोड़कर एक नदी में पानी पीने गई। वह इस बात से अनजान थी कि इस नदी में घड़ियाल हैं जैसे ही उसने पानी पीना शुरू किया वैसे ही एक मगरमच्छ ने उस पर हमला कर दिया और उसे खा लिया इस प्रकार रानी भी बच्चे को अकेला छोड़ कर इस जहां से चली गई।

इस प्रकार माता और पिता दोनों के मारे जाने पर वह शिशु अनाथ हो गया। जब बच्चे की करुण स्थिती देखकर माता पार्वती के मन में संदेह आ गया कि सत्यव्रत तो भगवान भोलेनाथ का बहुत बड़ा भक्त था । उसका वैभव चला गया । उसका राज्य चला गया। दुश्मनों के हाथों उसकी मृत्यु हो गई। उसकी पत्नी की बहुत बड़ी भक्त थी और वह भी मर गई और बच्चा अनाथ हो गया। यह कैसे हो सकता है कि इतने बड़े भक्तों का बच्चा आज अनाथ कैसे हो सकता है? पार्वती यह सब सोच कर तिलमिला उठीं।

(इस पर भगवान शंकर भोले पार्वती तुम्हें दिखाई दे रहा है कि)

पार्वती जी ने भगवान शंकर के आगे अपने प्रश्नों का अंबार लगा दिया, " प्रभु ! सत्यव्रत तो आपका बहुत बड़ा भक्त था वह आपके मंदिर जाता था जल चढ़ाता था आपकी सेवा में लगा रहता था और उसकी पत्नी भी उसी की तरह आपकी बहुत बड़ी भक्त थी वह भी मंदिर जाती थी जल चढ़ाते थी और आपकी सेवा में लगी रहती थी। पहले दोनों का वैभव चला गया और फिर दोनों मर गए। उनका बच्चा अनाथ हो गया और वह बालक तालाब के किनारे अनाथ पड़ा हुआ है।
भगवान शिव की आराधना करने वाले को इतना कष्ट होता है शिव की आराधना करने को वाले इतनी परेशानी उठानी पड़ती है शिव की आराधना करने वाले को इतना दर्द होगा। शिव की आराधना करने वाले को इतनी तकलीफ होगी। आपके होते हुए ऐसा तो नहीं होना चाहिए था। भगवान भोलेनाथ हे प्रभु अब आप ही बताइए कि इस बच्चे पर यह दुख का पहाड़ कैसे आया ? क्यों आया? इसके ऊपर यह तकलीफ कैसे आई?"

भगवान भोलेनाथ मुस्कुराए और बोले, "चलो पार्वती ! बच्चे के पास घूम कर आते हैं।" ममतामई पार्वती बस यही तो चाहती थी। वह भगवान शिव के साथ चल दीं।  

जैसे ही पार्वती इस बच्चे के पास पहुंचने वाली थी उन्हें बहुत तीव्र प्यास लगने लगी वे प्यास से व्याकुल होने लगी । उनकी व्याकुलता देखकर भगवान भोलेनाथ बोले, " हे प्रिय ! क्या हुआ । बड़ी व्याकुल दिखाई दे रही हो।"

पार्वती जी बोली, "प्रभु ! बहुत तेज प्यास लग रही है।" 

"देखो नीचे कितना सुंदर सरोवर है । जाओ और उसमें पानी पी लो।" भगवान भोलेनाथ बोले ।

"मुझे नंदी से नीचे तो उतारो।" तब भगवान भोलेनाथ ने उन्हें नंदी से नीचे उतारा और जैसे ही माता पार्वती सरोवर में जल पीने गई तो वहां क्या देखती है कि उसमें राजा सत्यव्रत की पूर्व जन्म की कहानी चल रही है। एक ही क्षण में राजा सत्यव्रत का पूर्व जन्म संपूर्ण जीवन वृत्त माता पार्वती की आंखों के सामने घूम गया।

माता पार्वती ने जैसे ही तालाब में देखा तो उन्हें दिखाई दिया कि सत्यव्रत ने पूर्व जन्म में दूसरे की सत्ता, वैभव, धन, दौलत सब कुछ धौखे से चुरा लिया था। इसी कारण पहले सत्यव्रत की और फिर उसकी पत्नी की मृत्यु हुई।

साथियों यह कहानी हमें सीख देती है कि दूसरों का धन छीनने वाला कुछ समय के लिए सुखी रह सकता है लेकिन बाद में वह इसका भूख भोक्ता है क्योंकि जिस दिन किसने चुराया है उसे न जाने कितनों को सुख मिलता उसने उन सब की हाय प्राप्त की है।

विद्वानों का कहना है कि यह दुनिया लेनदेन पर चलती है यदि दुनिया भर का लेनदेन बराबर हो गया तो उस दिन पहले आ जाएगी इसी कारण उनका मानना है यदि कोई तुम्हारा धन लेकर चला जाए तो दुख मत मनाओ खुश होओ कि अगले जन्म में वह आपका नौकर या आपका सेवक बनकर पैदा होने वाला है क्योंकि किसी न किसी बहाने से यह आपके पैसे को अवश्य लौटाएगा और यदि आपने किसी का धन रख लिया है तो उसे तुरंत लौटा दो कहीं ऐसा ना हो कि आपको उसका धन लौटाने के लिए दूसरा जन्म लेना पड़ेगा।

उधर माता पार्वती ने पूर्व जन्म से लेकर राज्य की मृत्यु और रानी की घड़ियाल द्वारा नदी में खींच कर ले जाने से मृत्यु तक की सारी घटना देख ली।

भगवान शिव बोले, " पार्वती ! बेशक इसने मेरी आराधना की, मुझ पर जल चढ़ाया, मेरी सेवा की, लेकिन जो पाप कर्म इसने पूर्व जन्म में किया था। वह तो इसे भुगतना ही था । इसी कारण है यह दोनों मृत्यु को प्राप्त हुए।

मैं यहां साथियों मैं यहां आपसे एक बात कहना चाहूंगा कि आप सत्य सनातन धर्म को प्रसारित करने वाले वेद पुराणों को सत्य मानो या ना मानो, उनमें लिखी बातों को सत्य मानो या ना मानो, अपने पूर्वजों को मानो या ना मानो, भगवान है यह भी मानो या ना मानो, अपने माता-पिता को मानो या ना मानो, अच्छे बुरे को मानो या ना मानो परंतु एक बात अवश्य ध्यान रखना यदि आपने किसी का दिल दुखाया है या कोई पाप कर्म किया है तो आप को उसका फल भुगतना ही पड़ेगा। कर्म सिद्धांत बहुत ही सूक्ष्म सिद्धांत है यह सभी की समझ में इतनी आसानी से नहीं आने वाला है। 

सीता ने एक चिड़िया को सोने के पिंजरे में कैदी बना कर रखा तो उसे अशोक वाटिका में कैदी करना पड़ा। भगवान राम ने छिपकर बाली का वध किया था  उस बाली ने अगले जन्म में एक बहेलिया के रूप में भगवान कृष्ण का वध किया। धृतराष्ट्र ने अपने पूर्व जन्म में अपने स्वाद के लिए हंस हंसिनी के 101 बच्चों को खा लिया था। इसी कारणों से अपने 101 पुत्रों की मृत्यु देखनी पड़ी 

यह भी जान लो कि कर्म का सिद्धांत सभी पर कार्य करता है और हमें बताता है कि पाप कर्म का भोग तो भगवान को भी भुगतना पड़ा है। हम और आप तो मनुष्य है। अतः हमें अपने पाप कर्म स्वयं ही भोगने पड़ेंगे। इसे कोई दूसरा नहीं भोगेगा

साथियों यह हमेशा ध्यान रखना कि हमारी कमाई के हिस्सेदार हमारे बच्चे, हमारे माता पिता, हमारी पत्नी, हमारे भाई बहन, हमारे नाते-रिस्तेदार सभी हो सकते हैं। लेकिन हमने कमाया किस प्रकार है। उसके द्वारा किए गए पाप कर्म का भागीदार हमें खुद ही होना होता है न कि हमारे कमाई को खाने वाले इस पाप कर्म के भागीदार होते हैं। 

पूर्व के कर्म का भोग हमें दुख के रूप में, तकलीफ के रूप में, दर्द के रूप में, कष्ट के रूप में, साधारण या असाध्य बीमारी के रूप में, अपनों को होने वाले बीमारी व कष्ट के रूप में या उनके बिछोह के रूप में भुगतना पड़ेगा। जी हां साथियों बिल्कुल भुगतना पड़ेगा। आप कितने भी भक्ति क्यों नहीं कर ले। यह पाप कर्म कटेगा केवल आपके भोग के उपरांत ही। अतः पाप कर्मों का हिसाब तो परमपिता भगवान भोलेनाथ को तो देना ही पड़ेगा।

साथियों भगवान भोलेनाथ पार्वती से बोले, "पार्वती ! अब तुमने समझ लिया होगा कि इसने पूर्व जन्म में जो दूसरे का धन, वैभव, सत्ता आदि जो चुराई थी। वह इस जन्म में इससे छिन गई। 

माता पार्वती बोली, "तो इसमें इस बच्चे का क्या दोष और जब इतनी कठिन मृत्यु प्राप्त ही करनी है और बच्चे भी अनाथ ही होना हैं तो आपको एक लोटा जल चढ़ाने का क्या फायदा हुआ ? फिर आप पर कोई एक लोटा जल क्यों चढ़ाए? लोग क्यों नहीं कहेंगे पूछेंगे की सत्यव्रत जब इतना बड़ा शिव भक्त था तो उसकी मृत्यु क्यों हो गई? उसकी पत्नी को घड़ियाल क्यों खा गया? 

भगवान भोलेनाथ ने कहा, "यह तो उसने पूर्व जन्म का फल भुगता है।"

 माता पार्वती ने फिर से पूछा, "तो फिर आप की आराधना करने का, आपकी सेवा करने का, आप पर जल चढ़ाने का आप पर बेलपत्र चढ़ाने का देवालय जाने का, शिवालय जाने का यहां तक कि उसका मंदिर जाने का क्या फायदा हुआ?

साथियों तो सुनिए, सभी ध्यान से सुने कि भगवान भोलेनाथ ने पार्वती के इस प्रश्न का जवाब किस प्रकार दिया। इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए भगवान ने  अपने 19 अवतारों में से 14वें अवतार भिक्षुवर्य अवतार के रूप में अवतार लेना पड़ा। कैसे चलिए आपको आगे की कहानी सुनाते हैं .......

भगवान भोलेनाथ बोले, "देवी ! पहले एक कथा सुन लीजिए की पहले देवराज नाम का ब्राह्मण था । जो ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ लेकिन ब्राह्मण कर्म से पूर्णतया वंचित था। वह चोरी करके धन प्राप्त करने लगा था।"

साथियों बड़े-बड़े विद्वान कहते हैं कहते हैं कि जब कोई जीव जन्म लेता है तो उसके उदर अर्थात पेट के भरने की जिम्मेदारी इस धरा के स्वामी भोलेनाथ स्वयं अपने ऊपर ले लेते हैं। यहां तक की उस जीव के बच्चों के पेट भरने तक की जिम्मेदारी भी वे अपने ही ऊपर ले लेता है। तब तक जब त
क हम सात्विक बुद्धि और सात्विक तरीके से कमाई करते हैं। लेकिन जब हम दुष्ट बुद्धि से या भ्रष्ट बुद्धि से या किसी अन्य दुष्कर्म के लिए धन चाहने लगते हैं तो वह परमपिता हमारे लिए यह सब करना बंद कर देता है।

साथियों यही देवराज के साथ हुआ कि जब वह एक सुंदर स्त्री वेश्या के चक्कर में पड़ गया और उसकी मांगों को पूरा करने के लिए उसने अपने घर की सारा जमा पूंजी उस पर खर्च कर दी तो और उसकी और मांगों को पूरा करने के लिए उसने चोरी करनी शुरू कर दी। उसका पैसा समाप्त होने पर उस वैश्य ने भी उसे त्याग दिया।

एक दिन वह मंदिर में पहुंचा तो मंदिर में शिव कथा चल रही थी। उसी वक्त उसका स्वास्थ्य खराब हो गया । इस कारण वह एक महीने तक चली इस कथा का श्रवण करता रहा। और अंत में उसकी मृत्यु हो गई। तो यमराज के दूतों के पहुंचने से पहले भगवान भोलेनाथ अपने नंदी को लेकर देवराज के पास पहुंच गए और देवराज को उस पर बिठा कर चल दिए। 

देवराज को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने भगवान भोलेनाथ से पूछा, "भगवन ! मैंने तो हमेशा पाप कर्म ही किए, फिर आप मुझे अपने लोक क्यों ले कर के जा रहे हैं?"

तब भगवान शिव के स्थान पर नंदी ने जवाब दिया, " सुन देवराज ! तूने ऐसा कोई काम नहीं किया कि तुझे शिव लोक मिल सके। तूने हमेशा पाप कर्म किए हैं, दुष्ट बुद्धि रखी है, दूसरों को हमेशा परेशान किया है, दूसरों को हमेशा दुख और दर्द पहुंचाया है। परंतु ! "

"परंतु क्या? नंदी महाराज !" देवराज ने पूछा

नंदी ने उत्तर दिया,  " सुन देवराज ! यह तेरा पुण्य नहीं है । यह तेरी माता का पूण्य है। जो एक लोटा अपने नाम से भगवान भोलेनाथ को अर्पित कर थी तो दूसरा तेरे नाम का भगवान भोलेनाथ को अर्पित करती है, और उसी का फल है कि आज तू शिव लोक जा रहा है।

आपको भी लगा होगा "तो इस कथा का बच्चे से क्या संबंध?" माता पार्वती को भी ऐसा ही लगा तब भगवान भोलेनाथ बोले, "सुन पार्वती ! नंबर एक यदि बच्चे का जन्म सत्यव्रत के मरने से पूर्वी ही हो गया होता तो यह बच्चा भी मर दिया गया होता लेकिन ऐसा नहीं हुआ नंबर दो इसी कारण इस बच्चे का जन्म पहले नहीं कराया गया । नंबर 3 यदि ऐसा नहीं होता तो इसकी मां जब पानी पीने जाती तो घड़ियाल उसके साथ इसे भी खा गया होता। इस प्रकार दोनों की मृत्यु हो जाती है तो मैरे भक्त सत्यव्रत के घर में दीप जलाने वाला कोई नहीं होता। पार्वती ! अब तुम्हें पता चल ही गया होगा कि भगवान शिव को एक लोटा जल चढ़ाने के कारण ही यह बच्चा जीवित है अर्थात माता-पिता के द्वारा चढ़ाए गए एक लोटा जल का फल निकट भविष्य में इस बच्चे को अवश्य मिलेगा।

साथियों इस कहानी से आपको पता चलेगा कि इसके  माता-पिता के द्वारा भगवान भोलेनाथ पर चढ़ाए गए एक लोटा जल का फल निष्फल नहीं होगा। इस बच्चे को एक लोटा जल का फल क्या मिलेगा ? उसका इसको क्या फायदा है। कोई भगवान भोलेनाथ को जल क्यों चढ़ाए ? आज इस कथा से आपको सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे।

भगवान भोलेनाथ नहीं यह कहानी बताते बताते पार्वती के सामने ही एक बूढ़े  भिक्षुक का रूप धारण किया अर्थात भिक्षुक अवतार ग्रहण किया। यह अवतार भिक्षुवर्य अवतार के नाम से जाना गया।
बोल भिक्षुवर्य अवतार की जय।

साथियों जब भगवान भोलेनाथ ने भिक्षुवर्य अवतार ग्रहण किया तो उस शिशु को अपनी गोद में उठाया और लाड प्यार करने लगे । इसके उपरांत वे उस तालाब के पास कुछ ही दूरी पर बह रही नदी के घाट के दूसरी पार पहुंच गये जहां सत्यव्रत की पत्नी ने प्राण त्यागे थे। वहां एक संतानहीन बूढ़ी धोबिन कपड़े धो रही थी।

भगवान भोलेनाथ उसके निकट पहुंचे, परंतु वह अपने कपड़े धोने के काम में इतने तल्लीन थी कि बाबा के आने तक की आहट भी नहीं हुई । 

तो भगवान भोलेनाथ भिक्षु बोले, "माता, माता, ओ माता ! सुनिए ओ माता !"

माता के नाम के संबोधन से कपड़े धोते-धोते ही जैसे वह स्त्री पलटी तो उसके कपड़ों में जो जल था वह बाबा के ऊपर छींटों के रूप में जा पड़ा।

भगवान भोलेनाथ मुस्कुरा दिए । उनकी मुस्कुराहट को देखकर पार्वती जी खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, "नाथ !आपकी लीला भी अपरंपार है। आपने बहुत बढ़िया भेष बनाया है।" 

भिक्षु बन कर पहुंचे भगवान बोले, "प्रिया ! सही कहा तुमने जैसा वेश बना करके आया था। जल भी वैसा ही चढ़ा है। 

बूढ़ी माई बोले, "क्या बात है बाबा ?"

भोले बाबा ने कहा, " माता  ! इस बच्चे को पाल लो । इसका सारा खर्चा मैं उठा लूंगा।" 

बुढ़िया माई को बड़ी हैरानी हुई और बुढ़िया माई बोली, "बाबा ! फिर आप ही इसे क्यों नहीं पा लेते। "

भगवान भोलेनाथ बोले,  " माता ! आप तो मां हो और मां बच्चे का पालन पोषण करना जानती है। उसे अच्छे संस्कार देना भी जानती हैं। परंतु मैं ठहरा एक भिक्षुक गली-गली भीख मांगने वाला। इस बच्चे का पालन पोषण में कैसे करूंगा। यह मैं नहीं जानता। "

"मां की ममता जाग गई। उसने उस बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और भिक्षुक से बोली, " बाबा ! मेरे गंदे कपड़ों का जल आपके ऊपर पड़ गया। आप नाराज तो नहीं हुए।"

भगवान भोले नथ भोले, " मां ! क्या बताऊं कि यदि कोई मेरे ऊपर एक बूंद जल भी चढ़ा दे तो मैं उसका कल्याण कर देता हूं।"

"अरे ! बड़ा विद्वानों जैसी बात कर रहा है। राख लपेट कर आया हुआ है और ऐसी बात करा जैसे भगवान भोलेनाथ हो। रुक अभी तेरा मुंह धुलाती हूँ । आज राजा के डर से मंदिर में अभिषेक से नहीं कर पाई।"

कहकर उसने नदी का जल वहां रखे घड़े में भरा और भगवान भोलेनाथ के ऊपर उलट दिया। भोले बाबा के शरीर पर कहीं भभूत लगी थी तो कहीं धुल गई थी। भक्त के आगे ऐसी असहाय अवस्था में भोले बाबा को देखकर।
पार्वती जी एक बार फिर से भगवान भोलेनाथ नाथ की लीला देखपर खिलखिला कर हंस पड़ी। भगवान भोलेनाथ भोले हस ले हस ले भक्तों के लिए मुझे यह भी मंजूर है।

एक घड़े पानी से उस भिक्षु का चेहरा साफ नहीं हुआ तो है दूसरा घड़ा भरने के लिए मुडी तो भिक्षुक के चेहरे के तेज को देख कर रुक गई । भगवान भोलेनाथ अपने रूप में आ गए।

भगवान भोलेनाथ को सामने देखकर बूढ़ी धोबन फूट-फूटकर रोने लगी वह उनके पैरों में गिर पड़ी और बोलि, "आज राजा ने मुझे आपके मंदिर में आपका अभिषेक नहीं करने दिया तो आप अपना अभिषेक कराने स्वयं ही आ गए। मैं धन्य हो गई । आज मुझे अपने एक लोटा जल चढ़ाने का फल मिल गया। आप के साक्षात दर्शन हो गए।"

"हे शंभू ! हे भोलेनाथ ! मुझे माफ करना । आप जिस रूप में आए, मैं उस रूप में आपको पहचान नहीं पाई।" बूढ़ी औरत बोली।

भोले नाथ बोले, " मां ! मांग क्या मांगना है?"

"आप के दर्शन हो गए और आज का अभिषेक हो गया। मुझे सब कुछ मिल गया । मुझे कुछ नहीं चाहिए। परंतु मुझे एक बात बता दीजिए बाबा कि यह बच्चा कौन है? और इसे आप लेकर क्यों घूम रहे हैं? इसका आप से क्या संबंध है?", धोबन बोली।

" मां ! मेरा इस से कोई संबंध नहीं है, परंतु जो मुझ पर एक लोटा जल चढ़ा देता है तो वह इकहत्तर पीढ़ियों तक मेरा और मैं उसका हो जाता हूं। बस यही संबंध है इसका और मेरा, और बता तेरा और मेरा। "

" मां ! इसके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं है परंतु इसके पिता ने मेरे मंदिर में साफ-सफाई की है, मुझ पर एक लोटा जल चढ़ाया है, मुझे प्रकाशित करने के लिए दीपदान किया है, इसके पिता ने मेरे मंदिर में मेरा गुणगान किया है। जब इनमें से किसी एक फल को मैं खाली नहीं जाने देता तो इसके पिता ने तो मेरी सेवा में कई कई कार्य किए हैं। 

"बाबा ! आप इसे क्या फल दोगे?"
 
बाबा बोले, "इसकी जो राजसत्ता और वैभव चला गया है। इसके युवा होते ही इसे वापस दिला दूंगा क्योंकि इसके माता-पिता ने एक लोटा जल मुझ पर चढ़ाया है उसका फल इसे मिलना ही चाहिए।"

इतना कहकर भगवान भोलेनाथ अंतर्ध्यान हो गए और युवा होते ही सत्यव्रत के बेटे को उसका राजपाट और वैभव पुनः प्राप्त हो गया।

आज भी उज्जैन के ऋण मुक्तेश्वर मंदिर में लिखा हुआ है कि मेरी कथा सुनने वाला या मुझ पर एक लोटा जल चलने वाला
 मेरी 71 पीढ़ियों से जुड़ जाता है अर्थात वह हमारा  71 पीढ़ियों का साथी बन जाता है।

भोले बाबा तेरी नौकरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी 
 तेरे  दरवाजे की चाकरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी 
जबसे तेरा गुलाम हो गया तब से मेरा भी नाम हो गया
जबसे तेरा गुलाम हो गया तब से मेरा भी नाम हो गया
वरना औकात क्या थी मेरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी 
भोले बाबा तेरी नौकरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी 

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