पशुपति अस्त्र
पशुपति अस्त्र
पशुपति शब्द का अर्थ होता है शिव अर्थात वह जो सभी जीवों (जीवितो) का भगवान हैं। पशुपतास्र के सामने कोई भी जीवित या मृत वस्तु नहीं टिक सकती यहा तक कि यह भगवन ब्रम्हा के बनाये ब्रह्मास्त्र और ब्रम्हाशिर अस्त्र को भी निगल सकता है।
पशुपति व्रत का नाम आते ही दिमाग में पशुपति अस्त्र का नाम घूमने लगता है। जो महान भयानक एवं अत्यन्त विध्वंसक है। पशुपातास्त्र सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकता है। इसका प्रहार अचूक होने के कारण इसके प्रहार से बचना अत्यन्त कठिन। इसके लिए एक सार्वभौमिक नियम बनाया गया है कि इस अस्त्र से किया गया विनाश दोबारा ठीक नही किया जा सकता है। इस अस्त्र को अपने से कम बली या कम योद्धा पर नहीं चलाया जाता चाहिये।
यह भगवान पशुपतिनाथ का अस्त्र है, कहा जाता है कि उन्होने इस अस्त्र को ब्रह्माण्ड की सृष्टि से पहले ही आदि परा शक्ति का घोर तप करके उनसे प्राप्त किया था। यह भगवान शिव, माता काली और आदि परा शक्ति का अस्त्र है। यह एक ऐसा अस्त्र है जिसे मन, आँख, शब्द और धनुष से नियंत्रित किया जा सकता है। पुराग्रंथों में आवाहनित अर्थात प्रयोग किये गये पशुपतास्र का वर्णन इस प्रकार मिलता है कि यह “एक पैर, बड़े दात, 1000 सर, 1000 धड और 1000 हाथ, 1000 आंखे और 1000 जिव्हाओ के साथ अग्नि की वर्षा करता है।” ऐसा कहा जा सकता है कि यह अस्र तीनो लोको को नष्ट करने में सक्षम है।
महाभारत के युद्ध में भी पाशुपतास्त्र अस्त्र का वर्णन मिलता है। अर्जुन ने पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की अराधना की थी जिसका प्रयोग महाभारत युद्ध में अर्जुन ने जयद्रथ का वध करने के लिए पाशुपतास्त्र का प्रयोग किया था।
यह अस्त्र अर्जुन को कैसे प्राप्त हुआ?
अर्जुन जानते थे कि महाभारत का युद्ध होकर रहेगा। इसलिए इस युद्ध से पूर्व दिव्या अस्त्रों को प्राप्त करने के लिए इंद्रकील पर्वत पर पहुंच इंद्र की आराधना प्रारंभ की। तब इंद्र ने अर्जुन को बताया कि दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए भगवान शिवजी को प्रसन्न करना आवश्यक है। उन्हें प्रसन्न करके उनका सबसे घातक अस्त्र पशुपति अस्त्र प्राप्त किया जा सकता है। जिसके आगे ब्रह्मास्त्र आदि भी नहीं टिकते।
इंद्र की सलाह पर अर्जुन ने भगवान शिव से पशुपति अस्त्र प्राप्त करने की सलाह दी। इसके बाद अर्जुन ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या आरंभ कर दी। जैसे ही अर्जुन ने तपस्या प्रारंभ की वहां पर मूक नामक एक असुर जंगली सूकर का रूप धारण करके आ गया और उसकी तपस्या में बाधा पहुंचाने लगा। अर्जुन ने उसे तपस्या स्थल से भगाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह सूकर भागने के स्थान पर अर्जुन को ही मारने का प्रयास करने लगा। तब अर्जुन ने उस सूकर को मारना ही उचित समझा। सूकर को मारने के लिए अर्जुन ने जैसे ही धनुष पर बाण चढ़ाया वहां एक वनवासी आ गया।
वनवासी ने कहा कि तपस्वी इस सूअर पर मेरा अधिकार है क्योंकि इस सूकर को सर्वप्रथम मैने अपना लक्ष्य बनाया था। इस पर सिर्फ मेरा अधिकार है। लेकिन अर्जुन ने उसकी बातों अनदेखा कर सूकर पर अपना तीर छोड़ दिया जिससे उसकी वहीं पर मृत्यु हो गई। इस बात पर वनवासी और अर्जुन दोनों में भयंकर वाद विवाद आरंभ हो गया। जो युद्ध में बदल गया।
अर्जुन ने अपने धनुष से वनवासी पर बाणों की वर्षा करनी आरंभ कर दी, अर्जुन ने देखा कि उसका एक भी बाण नहीं लगा। अर्जुन हैरान और परेशान हो सोचने लगे कि ये कैसे संभव हो सकता है। आज तक उसके वाणों से कोई नहीं बच सका फिर यह वनवासी कैसे बच रहा है। तभी वनवासी ने अपने तीर से अर्जुन को मूर्छित कर दिया। होश आने पर अर्जुन समझ गए कि यह वनवासी कोई मामूली नहीं, कोई देव है जो परीक्षा ले रहा है।
अर्जुन ने वनवासी को प्रणाम किया और अपनी तपस्या के लिए वहीं पर मिट्टी का एक शिवलिंग बनाया और उस एक फूल माला चढ़ाई। अर्जुन ने देखा कि जो माला शिवलिंग पर चढ़ाई थी, वैसी ही माला उस वनवासी के गले में दिखाई दे रही है।
अर्जुन समझ गए कि यह वनवासी कोई और नहीं स्वयं भगवान भोलेनाथ हैं। यह जानकर अर्जुन ने भगवान शिव की स्तुति करनी प्रारंभ कर दी। अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अर्जुन को अपना पाशुपतास्त्र प्रदान किया।
उन्होंने अर्जुन से कहा अर्जुन यह मेरा पशुपति अस्त्र है इसकी कार्ड किसी पर भी नहीं है अगर यह एक बार चल गया तो सर्वनाश कर सकता है। वैसे तो इसे धनुष के साथ साथ मन, आँख और शब्द से भी नियंत्रित किया जा सकता है परंतु तुम इसे जब धनुष पर चढ़ाकर जैसा आदेश दोगे यह वैसा ही करेगा। कुछ विद्वानों का मत है कि अर्जुन ने पाशुपतास्त्र अस्त्र का प्रयोग जयद्रथ को मारने के लिए किया था। अब सवाल उठता है क्यों?
पशुपतास्र को आँखों, दिल या शब्दों से भी आवाहित कर सकते थे, पर उन्होंने अर्जुन को पशुपतास्र दिव्य तीर और धनुष के रूप में दिया था.
जिसने अर्जुन को बाण चलाने से रोक दिया.
असाध्य से भी असाध्य रोगोको भी ठीक करने की क्षमता रखता है।
तपस्या में बाधा बनकर आया सूकर
. लेकिन
वनवासी से हुआ अर्जुन का विवाद
इंद्र से प्राप्त किया दिव्यास्त्र
अर्जुन समझ गए कि ये स्वयं भोलेनाथ हैं. तब अर्जुन ने भगवान शिव की स्तुति की. अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अर्जुन को अपना पाशुपतास्त्र प्रदान किया. इसके बाद अर्जुन देवराज के इंद्र के पास गए और उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त किए. इस अस्त्र के बारे में कहा जाता है कि यह शिव का ऐसा अस्त्र है जो आंख, दिल और शब्दों से भी नियंत्रित किया जा सकता था. कुछ विद्वानों का मत है कि अर्जुन ने पाशुपतास्त्र अस्त्र का प्रयोग जयद्रथ को मारने के लिए किया था.
पाशुपतास्त्र (Pashupatastra) – भगवान महादेव का महाविनाशक अस्त्र
पाशुपतास्त्र (Pashupatastra) – भगवान महादेव का महाविनाशक अस्त्र ! भगवान महादेव के दैवी अस्रो का जब भी जिक्र होता हे तब सबसे पहले त्रिशूल और पशुपतास्र का नाम आता हे. पाशुपतास्त्र को भगवान शिव, माता शक्ति और कलि ये तीनो देवताये मन, आंखे, शब्द, या फिर तीर से आवाहित कर सकते हे. भगवान् महादेव इसका उपयोग दुनिया के अंत में सब कुछ नष्ट करने के लिए करते हे. नमस्कार मित्रो स्वागत हे आपका मिथक टीवी की mythological weapons शृंखला में आज हम बात करेंगे भगवान महादेव के उस अस्र की जो ब्रम्हास्त्र और ब्रम्हाशिर अस्त्र से भी ज्यादा विध्वंसकारी हे.
महाभारत युद्ध से पहले अर्जुन ने भगवान महादेव से इस प्राप्त किया था, भगवन महादेव ने किरात अवतार लेकर पहले अर्जुन की परीक्षा ली थी, और इसके बाद ही पशुपतास्र अर्जुन को दिया था. पाशुपतास्र देते समय भगवन शिव ने अर्जुन से कहा था “ये अस्त्र किसी भी मनुष्य, देवता, देवताओ के राजा, यम, यक्षो के राजा, वरुण किसी के भी पास नहीं हे,(महाभारत युद्ध के दौरण कर्ण के साथ भी पाशुपतास्त्र का उल्लेख हे, पर शायद कर्ण का पाशुपतास्त्र, अर्जुन के पाशुपतास्त्र का एक छोटा संस्करण हो सकता हे) इस अस्त्र को योद्ध किसी कम ताकदवर दुश्मन पर चलायेतो ये तीनो लोको की चल-अचल सभी चीजो को नष्ट कर देगा.”
कर्ण, भीष्म और द्रोणाचार्य का पशुपातास्र(Pashupat Weapon)
महाभारत काल में अर्जुन अकेला इन्सान था जिसे पाशुपतास्त्र मालूम था (अर्जुन और भगवन किराट के बारे में हमने पहले ही एपिसोड बनाया हुवा हे,) महाभारत में एक और अस्त्र पाशुपत weapon का उल्लेख आता हे जो भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को पता था पर शायद ये कोई दूसरा और तुलनात्मकदृष्टी से देखा जाए तो साधारण अस्त्र था, जो भगवान् शिव से सम्बंधित तो था, पर ये भगवन शिव के सबसे विध्वंसकारी अस्त्र जैसे पाशुपतास्त्र, रुद्रास्र और महेश्वरास्त्र से काफी कम ताकदवर था.
भगवान् महादेव पशुपतास्र को आँखों, दिल या शब्दों से भी आवाहित कर सकते थे, पर उन्होंने अर्जुन को पशुपतास्र दिव्य तीर और धनुष के रूप में दिया था. कुछ विद्वानों के अनुसार अर्जुन ने इस अस्त्र से जयद्रथ का वध किया था, इसके बारे मे विद्वानो मे मतभेद, कुछ विद्वान मानते हे कि उस समय सिर्फ इसका उल्लेख किया गया था. उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने ये जरुर कहा था की “अगर तुम्हे पशुपतास्र याद हे तो तुम जयद्रथ का निश्चित ही वध करोगे” पर इसका उपयोग करने का ठीक से उल्लेख नहीं मिलता, और कई विद्वानो के अनुसार जिस अस्त्र का उपयोग अर्जुन ने किया था, वो पशुपतास्र से बिलकुल मेल नहीं खाता.
रामायण मे इंद्रजीज का पाशुपतास्त्र (Pashupatastra)
ऐसा भी कहा जाता हे की रामायण युद्ध के समय रावनपुत्र मेघनाद ने इस अस्त्र का उपयोग लक्ष्मण पर किया था, पर वाल्मीकि रामायण के अनुसार देखा जाये तो किये हुये अस्त्र का वर्णन रुद्रास्त्र और महेश्वरास्त्र के वर्णन से मेल खाता हे इसके साथ प्रभू श्रीराम के पास पाशुपतास्त्र था. जब ऋषि वशिष्ट और शुक्राचार्य के बिच युद्ध हुवा था तब शुक्राचार्य द्वारा चलाये पशुपतास्र ने रूशी वशिष्ट के ब्रम्हास्त्र और ब्रम्हाशिर अस्त्र सहित सभी अस्त्रों को नष्ट कर दिया था, और आखिर में वशिष्ट को ब्रम्ह्दंड का उपयोग करना पड़ा था. आपको हमारा ये पाशुपतास्त्र (Pashupatastra) – भगवान महादेव का महाविनाशक अस्त्र कैसा लगा हमे कमेन्ट के जरिये बताये.
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