अक्षय पात्र और दासीमैया की कथा

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अक्षय पात्र और दासीमैया की कथा

आज छत्रपति संभाजी नगर महाराष्ट्र के दूसरे दिन की कथा में गुरु जी पंडित प्रदीप मिश्रा जी ने सुनाई दासी मैया की कथा।

कर्नाटक में दासी मैया नाम के भगवान भोलेनाथ के एक परम भक्त हुए हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ये भगवान भोलेनाथ के परम उपासक हुए हैं। वे बचपन से ही किसी वृक्ष के नीचे बैठ जाते और वहां मिट्टी से शिवलिंग बना लेते और उसकी मन लगाकर पूजा उपासना करते हैं। 

दासी मैया के पिता एक जुलाहा थे, जो कपड़े बुनने का काम किया करते थे। इसलिए दासी मैया का काम भी कपड़े बुनना ही हुआ। वे अपने इस पैत्रिक काम को मन लगाकर किया करते थे। उनकी कमाई इतनी नहीं थी कि वे अच्छे से भोजन कर सके । वे एक छोटे से झोपड़े में निवास करते थे।

दासी मैया जब 8 वर्ष के थे तभी भी मिट्टी एकत्रित करते, उसे गीला करते और उससे शिवलिंग का निर्माण करके उसकी पूजा किया करते। यही उनकी दैनिक प्रक्रिया थी। एक बार को खाना भूल जाए, पीना भूल जाए लेकिन शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करना कभी नहीं भूलते। 
शायद वह पूजा करते हुए गाते और गुनगुनाते हों 
मेरे नाथ दया करना तेरे भरोसे
मेरे बाबा दया करना तेरे भरोसे
ना घर के भरोसे ना परिवार के भरोसे
ना घर के भरोसे ना परिवार के भरोसे

जगह-जगह से बेलपत्र लाने से अच्छा उन्होंने यह समझा कि बेल का वृक्ष अपने घर में ही लगा लिया जाए इसलिए एक दिन उन्होंने अपने घर में ही बेलपत्र का वृक्ष लगा लिया । जो उनकी सेवा से अब काफी फल-फूल रहा था।

धीरे-धीरे समय बीतता गया और वे युवा हो गए उनके पिताजी ने उनका विवाह कर दिया। उनके बच्चे भी हो गए और अब वे सभी पूरे परिवार के साथ उसी झोपड़े में रहते थे । लोग कहा करते थे कि दासी मैया को केवल दो ही काम आते हैं भगवान भोलेनाथ का भजन-पूजन तथा कपड़े बनाना।

परिवार बड़ा होता गया और इनकम उतनी ही रही जिसके कारण घर में खाने के लाले पड़ने  लग गए। 6 दिन हो गए बाहर से कोई कमाई नहीं आई इस कारण घर का सारा धन तो पहले ही समाप्त हो चुका था और अब अन्न भी समाप्त हो गया।

पत्नी बोली घर में अन्न का एक भी दाना नहीं है। आप पूजा भी करो लेकिन बच्चों का पेट भी तो भरना है। आप अपने माता पिता की तरह कपड़ा क्यों नहीं बुनते । क्या आपको कपड़ा बुनना नहीं आता । दासी मैया बोले मुझे कपड़ा बुनना तो बहुत अच्छे से आता है और मैं कपड़ा बुन भी रहा हूं । अब उसने दिन रात कपड़ा बनता और भगवान की आराधना में ही लगा रहता है। 

शायद वह कपड़ा बुनता और गुनगुनाता
मेरे बाबा दया करना तेरे भरोसे
मैं तेरे भरोसे हूँ।
ना इनके के भरोसे हूं ना उनके भरोसे हूं
ना इनके के भरोसे हूं ना उनके भरोसे हूं
मेरे बाबा दया करना तेरे भरोसे

इस बार ऐसा कपड़ा बुन रहा हूं। जो बहुत महंगे दामों पर बिकेगा। जिससे हमारी बहुत आमदनी होगी और घर में अच्छा अच्छा भोजन आएगा।

कपड़ा बुनते बुनते एक दिन और बीत गया । पत्नी और बच्चों के मुख में एक भी निवाला नहीं गया। दासी मैया स्वयं भी तो कई दिनों से भूखा था । आज दासी मैया ने वह वस्त्र बिल्कुल तैयार कर लिया और उसे लेकर वे बाजार में पहुंच गए। 
यहां भी वह भगवान भोलेनाथ के भजन कीर्तन में मगन थे।

मेरे बाबा दया करना तेरे भरोसे
मैं तेरे भरोसे हूँ।
भोलेनाथ दया करना मैं तेरे भरोसे हूँ
शम्भू नाथ कृपा करना मैं तेरे भरोसे हूँ 
सारे जग ने ठुकराया है तूने ही संभाला है
सारे जग ने ठुकराया है तूने ही संभाला है

दासी मैया ने जो कपड़ा बनाया वह इतना शानदार बनाया कि कोई उसकी सुन्दरता की कल्पना भी नहीं कर सकता था। दासी मैया ने जिसको भी वह कपड़ा दिखाया उसकी सुंदरता देखकर उसने स्वयं ही अनुमान लगा लिया कि यह बहुत महंगा होगा इसलिए उसने उसे खरीदना ही मुनासिब नहीं समझा। और महंगा प्रतीत होने के कारण किसी ने भी उस कपड़े की कीमत पूछना भी उचित नहीं समझा।

सुबह से शाम हो गई । उस कपड़े को खरीदने वाला कोई नहीं आया तो निराश होकर दासी मैया घर की ओर चल दिए। इतना शानदार कपड़ा भी नहीं बिक तो अब घर में खाना कैसे बनेगा? बच्चे क्या खाएंगे ? उनकी आस टूट जाएगी ? और फिर से शिव भजन गुनगुनाने लगे।
जैसे वे बोल रहे हो
मेरे बाबा दया करना तेरे भरोसे
मैं तेरे भरोसे हूँ।
भोलेनाथ दया करना मैं तेरे भरोसे हूँ
ना इनके के भरोसे हूं ना उनके भरोसे हूं
ना इनके के भरोसे हूं ना उनके भरोसे हूं
मेरे बाबा दया करना तेरे भरोसे
मैं तेरे भरोसे हूँ।

वे इसी विचार में डूबे हुए जा रहे थे कि रास्ते में बैठे एक बुजुर्ग  ने उन्हें पुकारा। वह ठंड से बहुत बुरी तरह काँप रहा था।
वह दासी मैया से बोला, "भैया !  ओ भैया ! मुझे बहुत ठंड लग रही है। मुझे अपना कपड़ा दे दो । इससे मेरी ठंड मिट जाए।" 

दासी मैया में सोचा जब इस कपड़े के बारे में बड़े-बड़े व्यापारियों ने नहीं पूछा तो शायद यह कपड़ा हमारे किसी काम का नहीं इसलिए उसने वह कपड़ा उसे दे दिया।

बुजुर्ग ने उस कपड़े को फाड़ फाड़ कर अपने शरीर पर जगह-जगह बांधना शुरू कर दिया। 

थोड़ी देर बाद जब उसे होश है तो उसने देखा दासी मैया खड़ा उसे देख रहा है। तो उस बुजुर्ग ने कहा, "भैया ! तुम्हें बुरा तो नहीं लगा। मैंने तुम्हारी कड़ी मेहनत से बनाया हुआ, यह कपड़ा फाड़ दिया। "

इस पर दासी मैया ने जवाब दिया, "यह कपड़ा मैं तुम्हें दे चुका हूं , इसलिए इस पर मेरा कोई हक नहीं रहा। अब आप इसका जो चाहे करें।"

"भैया ! मुझ पर एक उपकार और कर दो। मुझे बहुत तेज भूख लगी है । कुछ खाना खिलवा दो।" इस आग्रह को सुनकर दासी मैया उस वृद्ध को अपने घर ले आया और अपनी पत्नी से बोलो, "इस मेहमान के लिए भोजन की व्यवस्था करो।" 

तो दासी मैया की पत्नी बोली, "घर में अन्न का एक दाना भी नहीं है। फिर इन्हें कहां से भोजन पवाएं।"

उस पर दासी मैया बोले, "जाओ और कोई फल या सब्जी ही ले आओ ताकि इनका पेट भर सके।" 

पति के आदेश के सामने दासी मैया की पत्नी को कुछ नहीं सूझा तो वह पेड़ पर लगे कच्चे बेल के फल को तोड़ने के लिए ऊपर चढ़ी ही रही थी कि उसके हाथ से बेल का पत्ता टूट कर उस वृद्ध के ऊपर जा गिरा। 

जैसे ही वह बेलपत्र उस वृद्ध के ऊपर गिरा। वह वृद्ध भोले बाबा के वेष में प्रगट हो गया। भोले बाबा को सामने देख दसिमैया का पूरा परिवार उनके सामने दंडवत हो गया।

भोले बाबा ने दासी मैया से कहा, " दासी मैया ! तुम्हारे घर के अंदर जो हांडी रखी है, उसे लेकर आओ।" दासी मैया की पत्नी दौड़ कर हांडी उठा लाई। 

भगवान भोलेनाथ ने वह हांडी अपने हाथ में ली और उसमें पढ़ा हुआ चावल का एकमात्र दाना अपने हाथ में निकाल लिया और उस दाने को पुनः उसी हांडी में डाल दिया। 

जैसे ही वह दाना उस हांडी में गिरा वह हांडी चावलों से ऊपर तक भर गई। भगवान भोलेनाथ बोले दासी मैया आज के बाद यह हांडी कभी खाली नहीं होगी। यह अक्षय पात्र बन गई है। कहते हैं तब से वह हिंदी दासी मैया के परिवार वालों के पास है। और आज तक दासी मैया की उसी पात्र में भोजन बनता है।

भगवान भोलेनाथ दासी मैया को अक्षय पात्र देकर चले गए। अब दासी मैया के घर मैं न तो कोई भूखा रहता और ना ही कोई उसके घर से भूखा जाता है। और दासी मैया फिर से भगवान भोलेनाथ के भजन कीर्तन में मस्त हो जाता है

मेरे बाबा दया करना तेरे भरोसे
मैं तेरे भरोसे हूँ।
भोलेनाथ दया करना मैं तेरे भरोसे हूँ
सारे जग ने ठुकराया है तूने ही संभाला है
सारे जग ने ठुकराया है तूने ही संभाला है
भोलेनाथ दया करना, मैं तेरे भरोसे हूँ।।


अक्षय पात्र आप भी बना सकते हैं। 

जब आप सबका आजमा कर देख सकते हैं प्रैक्टिकल करने में क्या जाता है जब आपके घर में कोई फंक्शन हो पार्टी हो दावत हो जब जब लगे की जितने लोग हम ने बनाए हैं उससे ज्यादा आने की संभावना हो सकती है व्यवस्था कैसे पूरी होगी तो उसके लिए अक्षय पात्र आप भी बना सकते हैं।
शंकर भगवान पर कुबेर भंडारी के नाम से चावल का एक गाना चढ़ाकर और चढ़े हुए चावल के उस एक दाने को इस प्रकार मांग कर लाना। 
मेरे कुबेर भंडारी बाबा, मेरे घर में हो रहे भोज की व्यवस्था आपको करनी है। मैं इसकी व्यवस्था करने में असमर्थ हूं । आप मेरे यहां भंडार में पधारे और उस भंडार को संभालें।

ऐसा कहकर वह चावल का दाना अपनी भोजन के स्थान पर भंडार में रख देना। आप देखेंगे की सारा काम पूरा हो जाएगा लेकिन आपके भंडार में कोई कमी नहीं आएगी।

★ याद रखें 
एक बार फिर बता दे कि एक चावल का दाना कुबेर भंडारी का नाम लेकर भगवान भोलेनाथ को चढ़ा दो और फिर उसे मान कर ला कर उसे अपने भंडार में रख दो आपका उसका पूरा घर है भगवान भोलेनाथ अपने हाथों से परा कर देगा।

जब आप बहुत टेंशन में या परेशानी में महसूस करो
जब आप बहुत टेंशन में या परेशानी में महसूस करो तो गले में पड़े रुद्राक्ष को अपने हाथ में दबाकर श्री शिवाय नमस्तुभयम का जाप करना शुरू कर दो। आपको तुरंत उसका प्रभाव  दिखाई देगा।


भजन 

भगवान दया करना मैं तेरे भरोसे हूँ
भगवान दया करना मैं तेरे भरोसे हूँ।।

भोलेनाथ दया करना, मैं तेरे भरोसे हूँ
महाकाल दया करना मैं तेरे भरोसे हूँ।।

भोलेनाथ दया करना, मैं तेरे भरोसे हूँ
शम्भू नाथ दया करना मैं तेरे भरोसे हूँ ।।

ना घर के भरोसे हूँ ना परिवार के भरोसे हूँ
ना घर के भरोसे हूँ ना परिवार के भरोसे हूँ
भोलेनाथ दया करना, मैं तेरे भरोसे हूँ ।।

ना घर की हो चिंता ना परिवार का हो बंधन
ना घर की हो चिंता ना परिवार का हो बंधन
भोलेनाथ दया करना, मैं तेरे भरोसे हूँ
शम्भू नाथ कृपा करना मैं तेरे भरोसे हूँ ।।

सारे जग ने ठुकराया है तूने ही संभाला है
सारे जग ने ठुकराया है तूने ही संभाला है
भोलेनाथ दया करना, मैं तेरे भरोसे हूँ।।

ना इनके भरोसे हूँ ना उनके भरोसे हूँ
भोलेनाथ दया करना, मैं तेरे भरोसे हूँ।।

भोलेनाथ दया करना, मैं तेरे भरोसे हूँ
शम्भू नाथ दया करना मैं तेरे भरोसे हूँ ।।

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