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03. रुद्रसंहिता | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 11. शिवपूजनकी विधि तथा उसका फल

03. रुद्रसंहिता | प्रथम (सृष्टि) खण्ड | 11. शिवपूजनकी विधि तथा उसका फल ऋषि बोले-व्यासशिष्य महाभाग सूतजी ! आपको नमस्कार है। आज आपने भगवान् शिवकी बड़ी अद्भुत एवं परम पावन कथा सुनायी है। दयानिधे ! ब्रह्मा और नारदजीके संवादके अनुसार आप हमें शिवपूजनकी वह विधि बताइये, जिससे यहाँ भगवान् शिव संतुष्ट होते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-सभी शिवकी पूजा करते हैं। वह पूजन कैसे करना चाहिये ? आपने व्यासजीके मुखसे इस विषयको जिस प्रकार सुना हो, वह बताइये । महर्षियोंका वह कल्याणप्रद एवं श्रुतिसम्मत वचन सुनकर सूतजीने उन मुनियोंके प्रश्नके अनुसार सब बातें प्रसन्नतापूर्वक बतायीं । सूतजी बोले- मुनीश्वरो ! आपने बहुत अच्छी बात पूछी है। परंतु वह रहस्यकी बात है। मैंने इस विषयको जैसा सुना है और जैसी मेरी बुद्धि है, उसके अनुसार आज कुछ कह रहा हूँ। जैसे आपलोग पूछ रहे हैं, उसी तरह पूर्वकालमें व्यासजीने सनत्कुमारजीसे पूछा था। फिर उसे उपमन्युजीने भी सुना था। व्यासजीने शिवपूजन आदि जो भी विषय सुना था, उसे सुनकर उन्होंने लोकहितकी कामनासे मुझे पढ़ा दिया था। इसी विषयको भगवान् श्रीकृष्णने महात्मा उपमन्युसे सुना था