05. कोटिरुद्रसंहिता | 17. शंकरजीकी आराधनासे भगवान् विष्णुको सुदर्शन चक्रकी प्राप्ति तथा उसके द्वारा दैत्योंका संहार
05. कोटिरुद्रसंहिता | 17. शंकरजीकी आराधनासे भगवान् विष्णुको सुदर्शन चक्रकी प्राप्ति तथा उसके द्वारा दैत्योंका संहार व्यासजी कहते है- सूतका यह वचन सुनकर उन मुनीश्वरोंने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करके लोकहितकी कामनासे इस प्रकार कहा। ऋषि बोले- सूतजी ! आप सब जानते हैं। इसलिये हम आपसे पूछते हैं। प्रभो ! हरीश्वर-लिङ्गकी महिमाका वर्णन कीजिये। तात ! हमने पहलेसे सुन रखा है कि भगवान् विष्णुने शिवकी आराधनासे सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था। अतः उस कथापर भी विशेषरूपसे प्रकाश डालिये । सूतजीने कहा- मुनिवरो । हरीश्वर- लिङ्गकी शुभ कथा सुनो ! भगवान् विष्णुने पूर्वकालमें हरीश्वर शिवसे ही सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था। एक समयकी बात है, दैत्य अत्यन्त प्रबल होकर लोगोंको पीड़ा देने और धर्मका लोप करने लगे। उन महाबली और पराक्रमी दैत्योंसे पीड़ित हो देवताओंने देवरक्षक भगवान् विष्णुसे अपना सारा दुःख कहा। तब श्रीहरि कैलासपर जाकर भगवान् शिवकी विधिपूर्वक आराधना करने लगे। वे हजार नामोंसे शिवकी स्तुति करते तथा प्रत्येक नामपर एक कमल चढ़ाते थे। तब भगवान् शंकरने विष्णुके भक्तिभावकी परीक्षा करनेके लिये उनके लाये हुए एक हजार कम